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________________ कठिनाई से पकवान बना सकी और बालक को उसी समय पारणा के लिए एक मुनि आ गये दिया । रात्रि में उसे भूख के पर आहारदानरूपी पुण्यफल से जैन साहित्य का बृहद् इतिहास परोसकर बाहर चली गई । जिन्हें उसने अपना भोजन दे कारण इतनी वेदना हुई कि वह मर गया राजगृह में भद्रा और सेठ गोभद्र के यहाँ शालिभद्र नामक पुत्र हुआ । वह बड़ा सुन्दर और गुणवान् था । जब वह एक दिन जिनमें से युवावस्था में पहुँचा तो उसके पिता ने ३२ कन्याओं से उसका विवाह कर दिया और इस तरह वह आनन्दपूर्वक रहने लगा । उसका पिता मुनि हो गया और समाधिमरणपूर्वक स्वर्ग गया। देवता पर्याय पाकर उसने अपने पुत्र शालिभद्र के लिए प्रचुर धनसंग्रह किया । उस समय ' इतना धनी जितना कि शालिभद्र' यह लोकोक्ति प्रचलित हो गई । उसकी मां ने उसकी बहुओं के लिए बहुमूल्य ३२ रत्नकम्बल खरीदे एक को भी खरीदने का सामर्थ्य राजा श्रेणिक को न था एक दिन अपने वैभव को देखने के लिए राजा श्रेणिक को साधारण मनुष्य के रूप में अपने घर आया देख और यह समझकर कि उसके ऊपर भी कोई है विरक्त हो गया और प्रत्येकबुद्ध बन गया और दीक्षा लेकर तपस्या करने लगा । अपने साले के इस चरित्र को देख धन्यकुमार भी सच वैभत्र छोड़ दीक्षित हो गया। दोनों ने घोर तपस्याकर मोक्ष पद पाया । । वह १७० संस्कृत काव्य है जिसमें ७ सर्ग हैं । ' धन्यकुमारचरित - यह एक लघु काव्य की भाषा सरल और सरस है । इस कथा का आधार गुणभद्र का उत्तरपुराण प्रतीत होता है । यह बात ध्यान देने योग्य है कि धन्यकुमारविषयक स्वतंत्र चरित्रों में यह सर्वप्रथम है और इस ग्रन्थ में किसी भी पूर्ववर्ती धन्यकुमारचरित्र या उसके लेखक का उल्लेख नहीं किया गया है । कर्ता और कृतिकाल - इसके लेखक माथुरसंघ के आचार्य माणिक्यसेन के प्रशिष्य और नेमिसेन के शिष्य गुणभद्र मुनि' हैं जिन्होंने इसकी रचना महोबे के चन्देलनरेश परमर्दिदेव के शासनकाल में मध्य प्रदेश के विलासपुर नगर में लम्बकंचुक श्रावक बल्हण की प्रेरणा से सं० १२२७ और १२५७ के मध्य किसी समय की थी । ग्रन्थकर्ता की अन्य कृतियों में बिजोलिया पार्श्वनाथ का स्तंभलेख और गुणभद्र - प्रतिष्ठापाठ भी हैं । १. जिनरत्नकोश, पृ० १८७. २. लेखक के विशेष विवरण के लिए देखें-जैन सन्देश, शोधांक ८, पृ० २७४ ७६ और पृ० ३०१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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