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________________ १६६ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास रचयिता और रचनाकाल-इसके रचयिता ( अनुवादक ) भट्टारक शुभचन्द्र हैं। इनका परिचय पाण्डवपुराण के प्रसंग में दिया गया है। ग्रन्थ के अन्त में दी गई प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि यह काव्य जवाछपुर के आदिनाथ चैत्यालय में सं० १६११ में लिखा गया था। इस काव्य की समाप्ति में उनके शिष्य सकलभूषण सहायक थे।' २. करकण्डुचरित-इस काव्य में ४ सर्ग हैं जिनमें ९०० श्लोक हैं। इसके रचयिता जिनेन्द्रभूषण भट्टारक हैं जो कि विश्वभूषण के प्रशिष्य तथा ब्रह्म हर्षसागर के शिष्य थे। इसमें अवान्तर कथाएँ बहुत संक्षेप में दी गई हैं। यह रचयिता के 'जिनेन्द्र पुराण' ग्रन्थ का एक भाग भी माना जाता है। कुम्मापुत्तचरिय-ऋषिभाषित सूत्र में सप्तम अध्ययन कुम्मापुत्त प्रत्येकबुद्ध से सम्बन्धित दिया गया है। इसके चरित्र पर भी दो काव्य उपलब्ध हुए हैं। पहला काव्य प्राकृत की २०७ गाथाओं में निर्मित है। कथानक संक्षेप में इस प्रकार है-एक समय भगवान् महावीर ने अपने समवसरण में दान, तप, शील और भावना रूपी चार प्रकार के धर्म का उपदेश देकर कुम्मापुत्त (कूमापुत्र) का उदाहरण दिया कि मावशुद्धि के कारण वह गृहवास में भी केवलज्ञानी हो गया था । कुम्मापुत्त राजगृह के राजा महिन्द सीह और रानी कुम्मा का पुत्र था । उसका असली नाम धर्मदेव था पर उसे कुम्मापुत्त नाम से भी कहते थे । उसने बाल्यावस्था में ही वासनाओं को जीत लिया था और पीछे केवलज्ञान प्राप्त किया। यद्यपि उसे घर में रहते सर्वज्ञता प्राप्त हो गई थी पर माता-पिता को दुःख न हो, इसलिए उसने दीक्षा नहीं ली। उसे गृहस्थावस्था में केवलज्ञान इसलिए प्राप्त हुआ था कि उसने पूर्व जन्मों में अपने समाधिमरण के क्षणों में भावशुद्धि रखने का अभ्यास किया था। इस ग्रन्थ में ५२, ११२, १६० संस्कृत पद्य, १२०-१२१ अपभ्रंश में तथा दो गद्य भाग अर्धमागधी के आ गये हैं। १. पद्य सं० ५४-५६, राजस्थान के जैन सन्त : व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ० ९८. २. जिनरत्नकोश, पृ० ६७. ३. जिनरत्नकोश, पृ० ९५;जैन विविधशास्त्र साहित्यमाला, सं० १३१, वाराणसी, १९१९, डा०प० ल. वैद्य, पूना और के० वी० अभ्यंकर, अहमदाबाद के संस्करण (१९३१) प्रस्तावना, टिप्पण आदि सहित; ए. टी. उपाध्ये, वेलगाँव, १९३६-भूमिका, अनुवाद, टिप्पण सहित. ५. इस ग्रन्थ में कुम्मापुत्त के पूर्व जन्मों की भी कथा दी गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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