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पौराणिक महाकाव्य
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हुई थी तथा इसका संशोधन जिनेश्वरसूरि तथा अन्य साहित्यिक विद्वानों ने किया था।
दिगम्बर साहित्य में उक्त चार प्रत्येकबुद्धों में से केवल करकण्डु के चरित्र को लेकर कई रचनाएँ लिखी गई हैं परन्तु उनमें करकण्डु को प्रत्येकबुद्ध नहीं कहा गया और उसके चरित्र को चमत्कारी एवं कौतूहलवर्धक घटनाओं से पूर्ण बनाया गया है। इस विषय में एक प्राचीन कृति अपभ्रंश में 'करकण्डुचरिउ' उपलब्ध है जिसे कनकामर मुनि ने ग्यारहवीं शती के मध्यभाग में रचा था। इसी का अनुसरण कर पश्चात्काल में इस कथा का संक्षेपरूप श्रीचन्द्रकृत कथाकोष, रामचन्द्रमुमुक्षुकृत पुण्याश्रव-कथाकोष और नेमिदत्तकृत आराधना-कथाकोष में दिया गया है । स्वतन्त्र काव्य के रूप में रइधू , जिनेन्द्रभूषण भट्टारक और श्रीदत्तपण्डितकृत करकण्डुचरितों का भी उल्लेख भण्डारों की सूचियों में पाया जाता है । शुभचन्द्र भट्टारककृत संस्कृत में १५ सर्गात्मक काव्य भी उपलब्ध है। अपभ्रंश के मर्मज्ञ डा० हीरालाल जैन ने करकण्डुचरिउ की भूमिका में उक्त कथानक की पूर्व-कथाओं से तुलना तथा उसके विविध तत्वों की खोज की है तथा अवान्तर कथाओं के अध्ययन के साथ परवर्ती साहित्य रयणसेहरीकहा ( जिनहर्षगणिकृत ) तथा हिन्दी काव्य पद्मावत ( मलिक मुहम्मद जायसीकृत) पर उक्त कथानक का प्रभाव दिखाया है। यहाँ उक्तविषयक संस्कृत में उपलब्ध दो रचनाओं का परिचय दिया जाता है।
१. करकण्डुचरित-इसमें १५ सर्ग हैं। इसमें करकण्डु की दक्षिण देश में विजययात्रा, तेरापुर में जैन गुफाओं का निर्माण, उसकी रानी का अपहरण, फिर सिंहलयात्रा, लौटते समय विद्याधरों द्वारा करकण्डु का अपहरण एवं विद्याधर कन्याओं के साथ विवाह आदि घटनाओं का रोमाञ्चक रीति से वर्णन है । यद्यपि इस काव्य के रचयिता ने इसे एक स्वतन्त्र ग्रन्थ के रूप में रचने का दावा किया है पर ग्रन्थ के मिलान से यह सिद्ध हुआ है कि यह कनकामर मुनिरचित 'करकण्डुचरिउ' का अनुवाद मात्र है। मूल-कथा के साथ-साथ सभी अवान्तर कथाएँ भी इसमें ज्यों की त्यों हैं।
१. वही, प्रशस्ति, श्लोक. ३२. २. जिनरस्नकोश, पृ० ६७. ३. भारतीय ज्ञानपीठ वाराणसी, १९६४, भूमिका, पृ० १३.३०. १. करकण्डुचरिउ, प्रस्तावना, पृ० २९.
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