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पौराणिक महाकाव्य
जो हो पर श्वे. जैनाचार्यों ने उत्तराध्ययन में समागत उक्त चार प्रत्येकबुद्धी पर बहुत-सा साहित्य रचा है। इनके अतिरिक्त अम्बड, कुम्मापुत्त तथा शालिभद्र आदि प्रत्येकबुद्धों पर भी कई रचनाएँ मिलती हैं। पश्चात्काल में इनमें से अनेकों कथानकों में परिवर्तन होने से इनका प्रत्येकबुद्ध रूप से उल्लेख नहीं हुआ। दिगम्बरमान्यता में प्रत्येकबुद्ध माने गये हैं पर उनका उल्लेख केवल पूजाओं में हुआ है। उत्तराध्ययन के उक्त चार प्रत्येकबुद्धों में से केवल करकण्डु पर संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषा में उक्त सम्प्रदाय के विद्वानों ने काव्य-ग्रन्थ लिखे हैं पर करकण्डु को उन्होंने कहीं भी प्रत्येकबुद्ध संज्ञा से नहीं कहा है।
- उत्तराध्ययन-समागत प्रत्येकबुद्धों पर समष्टिरूप में कई रचनाएँ लिखी गई हैं। उनमें श्रीतिलक (प्राकृत), जिनरत्न एवं लक्ष्मीतिलक (संस्कृत), जिनवर्धनसूरि ( संस्कृत), समयसुन्दरगणि ( संस्कृत ), भावविजयगणि (संस्कृत) तथा तीन अज्ञात-कर्तृक (२ अपभ्रंश और १ प्राकृत ) काव्य उपलब्ध हैं । यहाँ कुछ का परिचय दिया जाता है।
१. प्रत्येकबुद्धचरित-यह प्राकृत भाषा में निबद्ध रचना है जिसका ग्रन्थान ६०५० श्लोक है। बृहट्टिप्पनिका के अनुसार इसकी रचना सं० १२६१ में श्रीतिलकसूरि ने की थी। श्रीतिलकसूरि चन्द्रगच्छीय शिवप्रभसूरि के शिष्य थे। ग्रन्थ अबतक अप्रकाशित है।
२. प्रत्येकबुद्धचरित-यह संस्कृत में रचित काव्य है। इसका पूरा नाम प्रत्येकबुद्धमहाराजर्षिचतुष्कचरित्र है। इसके प्रत्येक पर्व में चार सर्ग हैं और अन्त में एक चूलिका सर्ग है। इस तरह इसके १७ सर्गों का रचना-परिमाण १०१३० श्लोक है । प्रस्तुत काव्य जिनलक्ष्मी शब्दांकित है जो इसके दो ग्रंथकर्ताओं को द्योतित करता है।
यद्यपि इसमें वर्णित चारों चरित्र एक-दूसरे से पूर्णतया पृथक् हैं अतएव इसमें धारावाहिकता का अभाव है फिर भी इसे एक अच्छे पौराणिक महाकाव्य का रूप दिया गया है। कवि ने इसमें प्रकृति-चित्रण और सौन्दर्य चित्रण में पर्यात रुचि ली है। पुरुष-पात्रों में सिंहरथ और स्त्री-पात्रों में मदनरेखा के रूप-वर्णन कल्पनात्मक दृष्टि से अच्छे बन पड़े हैं। जैनधर्म के साधारण सिद्धान्तों एवं नियमों का इस काव्य में अच्छा वर्णन हुआ है । १. जैन साहित्य संशोधक, भाग १, अंक २, पूना १९२५; जिनरत्नकोश, ..
पृ. २६३. २. जैसलमेर बृहद्भण्डार, प्रति सं० २७२, २७३; जिनरत्नकोश, पृ० २६३.
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