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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ___कवि ने इसकी रचना कब की यह जानने का विशेष साधन नहीं है फिर भी कवि के काल पर प्रकाश डालनेवाले कुछ सूत्र हमें मिलते हैं। नलायन के तृतीय स्कन्ध के अन्तिम पद्य से ज्ञात होता है कि कवि ने इस काव्य से पहले यशोधरचरित्र कान्य की रचना की थी। दोनों काव्यों में कुछ पद्य समान रूप में मिलते हैं। यशोधरचरित्र के प्रारम्भ में मंगलाचरण का निम्नांकित पद्य हेमचन्द्रकृत 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' से उद्धृत मालूम होता है। यथा
करामलकवद्विश्वं कलयन् केवलश्रिया।
अचिन्त्यमाहात्म्यनिधिः सुविधिर्बोधयेऽस्तु वः ।। चूंकि हेमचन्द्र का समय ईसा की बारहवीं शताब्दो है अतः माणिक्यसूरि का समय इसके बाद होना चाहिए।
'जैन प्रतिमालेखसंग्रह' में शामिल दो लेखों के आधार से यह कहा जा सकता है कि माणिक्यसूरि सं० १३२७ से सं० १३७५ के मध्य जीवित थे। सं० १३२७ में उन्होंने महावीर-प्रतिमा की और १३७५ में पार्श्वनाथप्रतिमा की प्रतिष्ठा कराई थी। इस काल के बीच कभी भी उन्होंने अपने दोनों महाकाव्यों की रचना की होगी, ऐसा हम मान सकते है। नलायन. काव्य के अन्य स्कन्धों की प्रशस्तियों में माणिक्यसूरि की कुछ अन्य रचनाओं के नाम भी आये हैं । यथा-१. अनुभवसारविधि, २. मुनिचरित, ३. मनोहरचरित, ४. पंचनाटक । पर इन ग्रन्थों की अबतक खोज नहीं हुई है। ___ नल के विषय में जैन विद्वानों की संस्कृत-प्राकृत में अन्य कृतियाँ इस प्रकार हैं
१. नलविलास नाटक-रामचन्द्रसूरिकृत । २. नलचरित-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितान्तर्गत ।
१. एतत् किमप्यनवमं नवमालाकं श्रीमद्यशोधरचरित्रकृता कृतं यत् ।-तृतीयस्कन्ध. २. स्क० ९, सर्ग २, श्लोक ८ तथा यशोधरचरित्र, सर्ग २, श्लोक ३३; स्कन्ध
९, सर्ग २, श्लोक २६ तथा यशोधरचरित्र, सर्ग २, श्लोक ३४; स्क. ५,
सर्ग 1, श्लो० २९ तथा यशोधरचरित्र, सर्ग १३, श्लो० ७८. ३. नि० श० पु० च०, पर्व १.११. ४. बुद्धिसागरसूरि-जैन प्रतिमालेखसंग्रह, प्रथम भाग, लेख सं० १३७
और ९८१.
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