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________________ पौराणिक महाकाव्य ३. नलचरित-धर्मदासगणिविरचित वसुदेवहिण्डी अन्तर्गत । ४. नलोपाख्यान-देवप्रभसूरिविरचित पाण्डवचरितान्तर्गत । ५. नलचरित-देवविजयगणिविरचित पाण्डवचरितान्तर्गत । ६. नलचरित-गुणविजयगणिविरचित नेमिनाथचरितान्तर्गत । ७. दवयंतीचरित-सोमप्रभाचार्यविरचित कुमारपालप्रतिबोधान्तर्गत । ८. दवयन्तीकथा-सोमतिलकसूरिविरचित शीलोपदेशमालावृत्ति में । ९. दवयन्तीकथा-जिनसागरसूरिविरचित कर्पूरप्रकरटीका में । १०. दवयन्तीकथा-शुभशीलगणिविरचित भरतेश्वरबाहुबलिवृत्ति में । ११. दवयन्तीप्रबन्ध-(गद्यरूप)। १२. , , -(पद्यरूप ) जैन ग्रन्थावली । १३. दवयंतीचरिय-पत्तनभाण्डार प्राकृत-सूचीपत्र । हनूमान्चरित-चौबीस कामदेवों में हनुमान १८ वे हैं। रामचरित्र-काव्यों में इनका चरित्र अच्छी तरह दिया गया है। फिर भी इनके चरित का अवलम्बन लेकर जैन कवियों ने स्वतंत्र काव्य ग्रन्थ लिखे हैं। इनमें से संस्कृत में १७वीं शताब्दी के विद्वान् ब्रह्मअजित ने १२ सर्ग में एक हनूमच्चरित्र की रचना की है।' इसे अंजनाचरित या समीरणवृत्त भी कहते हैं। यह अपने समय का लोकप्रिय काव्य रहा है। रचयिता एवं रचनाकाल-ब्रह्मअजित संस्कृत के अच्छे विद्वान् थे। ये गोल-शृंगार जाति के श्रावक थे। इनके पिता का नाम वीरसिंह एवं माता का नाम पीथा था। ये भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति के प्रशिष्य एवं भट्टारक विद्यानन्दि के शिष्य थे। इन्होंने भृगुकच्छपुर (भड़ौच ) के नेमिनाथ चैत्यालय में हनूमच्चरित की समाप्ति की थी। रचना-संवत् नहीं दिया गया है। __ अन्य हनूमच्चरित्रों में १५वीं शताब्दी के ब्रह्मजिनदास का गुजराती में है और रविषेण तथा ब्रह्मदयाल के हनूमचरित्र भी शायद देशी भाषाओं में हैं। हनूमान् की माता अंजना के नाम पर भी कई चरित लिखे गये हैं जिनका परिचय अलग दिया जायगा । १. जिनरत्नकोश, पृ० ६६६. २. वही. ३. जिनरत्नकोश, पृ० ४५९, डा. कस्तूरचन्द्र कासलीवाल-राजस्थान के जैन सन्त : व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ० १९५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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