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________________ पौराणिक महाकाव्य क्लिष्ट, कृत्रिम और श्लेषयुक्त पदावली का प्रयोग किया गया है। अर्थालंकारों के प्रयोग में कवि ने स्वाभाविकता का पूरा ध्यान रखा है। इसकी भाषा वैविध्यपूर्ण है। एक ओर इसमें सरल भाषा का प्रयोग हुआ है तो दूसरी ओर प्रौढ़ एवं पाण्डित्यपूर्ण भाषा का। फिर भी कवि का भाषा पर पूर्ण अधिकार प्रतीत होता है। भाषा जैसे उसके संकेत पर नाचती है। इस काव्य की भाषा का एक अन्य प्रधान गुण उसकी अलंकृति है। इसमें अनुप्रास और यमक का प्रयोग पद-पद पर मिलता है। ये अलंकार भाषा के भाररूप बनकर नहीं आये बल्कि भाषा-सौन्दर्य के वृद्धिकारक हैं। अनुप्रास और यमक के प्रयोग ने इस काव्य की भाषा को प्रवाहयुक्त, गतिमय, चंचल और ललित बना दिया है। इस काव्य में यत्र-तत्र मुहावरों का भी सुन्दर प्रयोग हुआ है। जिससे भाषा की व्यावहारिकता बढ़ी है। इस काव्य के प्रत्येक सर्ग में अनुष्टुप् का प्रयोग अधिक हुआ है। कतिपय सर्गों में विविध छन्दों का प्रयोग हुआ है, इसमें छन्द बहुत जल्दी-जल्दी बदले गये हैं। अन्य छन्दों में मालिनी, आर्या, शार्दूलविक्रीडित, वसन्ततिलका, मन्दाक्रान्ता, शिखरिणी, पृथ्वी, द्रुतविलम्बित, उपजाति, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, हरिणी, रथोद्धता, स्वागता, पुष्पिताग्रा, मंजुभाषिणी, स्रग्धरा, भंग, तोटक, भुजंगप्रयात, शस्थ, स्रग्विणी, हरिणप्लुता तथा कई प्रकार के अर्धसम वर्णिक वृत्तों का प्रयोग हुआ है। सवैया और षटपदी जैसे संस्कृतेतर छन्दों का प्रयोग इस काव्य में हुआ है। कविपरिचय एवं रचनाकाल-इस काव्य के अन्त में कोई प्रशस्ति नहीं दी गई है। इससे कवि का कोई विशेष परिचय नहीं मिलता। फिर भी प्रत्येक स्कन्ध के अन्त में जो प्रशस्ति दी गई है उसमें कवि ने अपना और अपने गन्छ का नाम दिया है। इससे ज्ञात होता है कि वटगच्छीय सूरि माणिक्यदेव ने इसकी रचना की है। 1. स्क. १, सर्ग १.३१, ३९, ४०, ४९; स्क.., सर्ग ५. ३५, स्क०३, सर्ग ९. १४, १६, स्क० ४, सर्ग ६. १६; स्क०५, सर्ग ४. ३-४, स्क० ७, सर ५. १२ भादि. २. स्क. ४, सर्ग ३. ४, सर्ग ६.५१, सर्ग ९.४५, सर्ग १२.४०. .. एतत् किमप्यनवमं नवमंगलाकं माणिक्यदेवमुनिना कृतिनां कृतं यत् । -प्रथम स्कन्ध. एतत् किमप्यनवमं नवमंगलाकं चक्रे यदन्न वटगच्छनभोमृगाः । -द्वितीय स्कन्ध. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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