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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास प्रभाव दिखाई पड़ता है। इस प्रसंग में अनेक भावसाम्य और शब्दसाम्य दिखाई पड़ते हैं। इस नलायनकाव्य में १२ वर्ष पर्यन्त नल-दमयन्ती के वियोग का वर्णन अत्यद्भुत है। जुए में आसक्ति रखनेवाले लोगों की जो-जो दुर्दशा या परिवर्तन होते हैं वे बड़े रोमांचकारी हैं। प्रसंग-प्रसंग पर अनेक चमत्कारी घटनाओं का वर्णन है। इसी ग्रन्थ में शकुन्तला, कलावती और तिलकमंजरी की अवान्तर कथाएँ भी द्रष्टव्य हैं।
इस वृहत् कथा में अनेक पात्र हैं किन्तु नल और दमयन्ती को छोड़ अन्य किसी पात्र के चरित्र का विकाश नहीं हुआ है। इसमें नायक नल का चरित्र बड़ा ही भव्य चित्रित किया गया है। नायिका दमयन्ती का भी पतिपरायणा भारतीय नारी के रूप में उत्कृष्ट चित्रण किया गया है। इस काव्य में प्रकृति-चित्रण भी विभिन्न रूपों में हुआ है। नलायन की श्रेष्ठता का बहुत बड़ा श्रेय प्रकृति और बीवन के बीच तादात्म्य स्थापित करने में है। पात्रों के सौन्दर्य-चित्रण में कवि ने दमयन्ती के सौन्दर्य-वर्णन में नखशिखपद्धति का अवलम्बन लिया है तथा नल के समग्र सौन्दर्य का संश्लिष्ट चित्रण किया है। इस परम्परागत कथानक में कवि ने अपने समय की रूढ़ियों, परम्पराओं, मान्यताओं और रीति-रिवाजों का यत्र-तत्र उल्लेख कर सामाजिक अध्ययन की पर्याप्त सामग्री प्रस्तुत की है।
पौराणिक काव्य होने पर भी इसमें अन्य दूसरे पौराणिक काव्यों की तरह जैनधर्म के सिद्धान्तों और नियमों का बाहुल्य नहीं है। इसमें धार्मिक नियमों का विवेचन कहीं भी क्रमिक रूप में न देकर यत्र-तत्र इतने संक्षिप्त रूप में दिया है। कि उससे कथानक में कोई शिथिलता नहीं आने पाई है।
इस काव्य मैं शान्त रस की ही प्रधानता है, शेष सभी रसों की भी सुन्दर योजना यथास्थान हुई है। अलंकारों में शब्दालंकार के यमक. अनुप्रास और वीप्सा का प्रयोग बहुत अधिक हुआ है। इसमें पाण्डित्यप्रदर्शन करने के लिए .. स्कन्ध २, सर्ग ४. ४-५, . सर्ग ८. ४४-४५, स्कन्ध १, सर्ग २. ३०-३१,
३०-३९, सर्ग १२.१४-१५ आदि। २. स्कन्ध २, सर्ग १४. ३०-३१; स्कन्ध ५, सर्ग २१. ६८, सर्ग ७. २. ३. स्कन्ध २, सर्ग ९. ८, स्कन्ध ३, सर्ग ९. २२, २७, ३४-३६, स्कन्ध ४,
सर्ग १.., ८, १०, सर्ग १. ६५-६७, ७२-७३. १. स्कन्ध १, सर्ग ५. ५१-५२, स्कन्ध ५, सर्ग ५. १८. ५. स्कन्ध 1, सर्ग १४. ४९, सर्ग .. ३२, ३८, स्क० ३, सर्ग ११. १३,
स्क० ४, सर्ग ४. ३०-३३.
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