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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास वालों की प्रार्थना पर की थी। इसकी रचना सं० १२१४ आश्विनवदी ७ बुधवार को हुई थी। इसकी प्रथम प्रति हेमचन्द्रगणि ने लिखी थी। ___ सनत्कुमार चक्रवर्ती का चरित इतना रोचक था कि इस पर और भी रचनाएँ लिखी गई हैं। संस्कृत में २४ सर्गात्मक एक उच्चकोटि का महाकाव्य भी रचा गया है। उसके रचयिता कवि जिनपाल उपाध्याय (सं० १२६२-७८) हैं।' इसका विवेचन महाकाव्यों के प्रसंग में किया जायगा। अपभ्रंश भाषा में नेमिनाहचरिउ के अन्तर्गत हरिभद्रसूरि ने रड्डा छन्दों में सनत्कुमार का चरित्र बड़े विस्तार से दिया है, जिसका सम्पादन और अनुवाद (जर्मनभाषा में) प्रसिद्ध जर्मन विद्वान् हर्मन याकोबी ने किया है। संस्कृत भाषा में सनत्कुमारचरित्र' नामक एक अज्ञात कवि की रचना भी जेसलमेर के भण्डार में मिली है। __ पाँचवें, छठे और सातवें चक्रवर्ती शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ हैं जो सोलहवे, सत्तरहवें और अठारहवें तीर्थकर भी हैं। तीर्थकर-चरित्रों में इनके सम्बंध की रचनाओं का परिचय दिया गया है । _सुभौमचरित-इसमें आठवें चक्रवर्ती सुभौम का चरित्र वर्णित है। यह साधारण कोटि की रचना है जो ७ सर्गों में विभक्त है।' सब मिलाकर ८९१ श्लोक हैं। प्रत्येक सर्ग में 'उक्तं च' कहकर अन्य ग्रन्थों से अनेक अंश उद्धृत किये गये हैं। इस चरित्र में कवि ने कथाप्रसंग से अभिमान करने का फल, निदान-फल, अति लोभ का फल और नमस्कार मंत्र का माहात्म्य दिखलाया है । ____ रचयिता और रचनाकाल-इसके रचयिता भट्टारक रत्नचन्द्र प्रथम हैं। ग्रन्थ के अन्त में एक प्रशस्तिद्वारा इन्होंने अपनी गुरु-परम्परा दी है। तदनुसार भट्टारक सकलकीर्ति की परम्परा में भुवनकीर्ति, उनके शिष्य रत्नकीर्ति, उनके शिष्य यशःकीर्ति, उनके गुणचन्द्र और उनके जिनचन्द्र तथा उनके सकलचन्द्र हुए । सकलचन्द्र के शिष्य रत्नचन्द्र थे। ये मूलसंघ सरस्वतीगच्छ के भट्टारक थे। काव्य-रचना का काल सं० १६८३ भाद्र० शु० ५ दिया गया है। इनकी अन्य रचना 'चौवीसी' गुजराती में है।
१. जिनरत्नकोश, पृ० ४१२. २. वही. ३. वही. ४. दिग० जैन पुस्तकालय, सूरत, वि० सं० २०१०, मूल और पं० लालाराम
शास्त्रीकृत हिन्दी अनुवाद; जिनरत्नकोश, पृ०- ४४६.
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