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पौराणिक महाकाव्य
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में किया जायगा । मुनि पुण्यकुशल ने भरत के चरित्र को लेकर 'भरतेश्वर बाहुबलिमहाकाव्य" लिखा है जो अप्रकाशित है । भरतचरित्र और भरतेश्वरचरित्र नामक दो अन्य रचनाओं का भी उल्लेख मिलता है पर उनके लेखक अज्ञात हैं ।
द्वितीय चक्रवर्ती सगर के जीवन पर प्राकृत 'सगरचक्रिचरित १३ का उल्लेख मिलता है जिसका प्रारंभ 'सुरवरकयमाणं नट्ठनीसेसमाणं' से होता है । हस्तलिखित प्रति का समय सं० १९९१ दिया गया है पर लेखक का नाम अज्ञात है ।
तृतीय चक्रवर्ती मघवा के जीवन पर कोई स्वतंत्र चरित उपलब्ध नहीं है ।
सनत्कुमारचरित ( सणकुमारचरिय ) - चतुर्थ चक्रवर्ती सनत्कुमार के जीवन पर यह प्राकृत भाषा में बड़ी रचना है। इसका परिमाण ८१२७ श्लोकप्रमाण है । इस चरित में उक्त नायक के अद्भुत कार्यों के वर्णन प्रसंग में कहा गया है कि एक बार वह एक घोड़े पर बैठा तो वह भाग कर उसे घने जंगल में ले गया जहां उसे अनेक मुसीबतों का सामना करना पड़ा परन्तु उन सब पर वह विजय पा गया और उसी बीच उसने अनेक विद्याधर पुत्रियों से परिणय किया ।
रचयिता और रचनाकाल - - इसके रचयिता श्रीचन्द्रसूरि हैं जो चन्द्रगच्छ में सर्वदेवसूरि के सन्तानीय जयसिंहसूरि के शिष्य देवेन्द्रसूरि के शिष्य थे । प्रणेता ने अपने गुरुभाई के रूप में यशोभद्रसूरि, यशोदेवसूरि और जिनेश्वरसूरि का नाम दिया है । ग्रन्थ के प्रारम्भ में कवि ने हरिभद्रसूरि, सिद्ध महाकवि अभयदेवसूरि, घनपाल, देवचन्द्रसूरि, शान्तिसूरि, देवभद्रसूरि और मलघारी हेमचन्द्रसूरि की कृतियों का स्मरण कर उनकी गुणस्तुति की है ।
श्रीचन्द्रसूरि ने उक्त ग्रन्थ की रचना अणहिलपुर (पाटन) में कर्पूर पट्टाधिपपुत्र सोमेश्वर के घर के ऊपर भाग में स्थित वसति में रहकर वहाँ के कुटुम्ब
9. विजयधर्मसूरि ज्ञानमन्दिर, आगरा.
२. जिनरत्नकोश, पृ० १९२.
३.
पाटन के ग्रन्थों की सूची ( गायकवाड़ प्राच्य ग्रन्थमाला ), भाग १, पृ०
१८२-१८३.
४. मोहनलाल द० देसाई - जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० २७७; जिनरत्नकोश, पृ० ४१२; प्रो० हीरालाल रसिकदास कापड़िया - पाइय भाषाभो भने साहित्य, पृ० ११६.
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