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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कुमारकवि ने किया। प्रान्त में मुनि के शाहू द्वारा लिखित ३३ पद्यों की प्रशस्ति दी गई है। प्रारंभ में ग्रन्थकर्ता ने पूर्ववर्ती अनेक ग्रन्थों और ग्रन्थकर्ताओं का उल्लेख किया है यथा- जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण. उमास्वाति वाचक, सिद्धसेन दिवाकर, हरिभद्र ( महत्तरापुत्र ), भद्रकीर्ति, सिद्धर्षिउपमितिभवप्रपंचा के कर्ता, तरंगवती के कर्ता पालित्तसूरि, सातवाहन के सभासद मानतुंगसूरि, भोज के सभासद देवभद्रसूरि, त्रिषष्टिशलाका के कर्ता हेमचन्द्र, दर्शनशुद्धि के कर्ता चन्द्रप्रभ और तिलकमंजरी के रचयिता धनपाल | १२८ बारह चक्रवर्ती तथा अन्य शलाका पुरुषों पर स्वतंत्र रचनाएँ : भरतेश्वराभ्युदय काव्य- इसमें ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र एवं प्रथम चक्रवर्ती भरत का उदात्तचरित वर्णित है । यह काव्य 'सिद्ध्यङ्क - महाकाव्य ' भी कहलाता था।' इसके रचयिता महाकवि आशाधर (वि० सं० १२३७ - १२९६) हैं । इनका परिचय त्रिषष्टिस्मृति के प्रसंग में दिया गया है । यद्यपि यह महत्त्वपूर्ण कृति अनुपलब्ध है फिर भी इसकी सुषमा को बतलानेवाले कुछ पद्य स्वयं आशाघर ने अपने ग्रन्थों की टीकाओं में उद्धृत किये हैं १. परमसमयसाराभ्याससानन्दसर्पत्, सहजमहसि सायं स्वे स्वयं स्वं विदित्वा । पुनरुदयदविद्यावैभवाः प्राणचारस्फुरदरुणविजृम्भा योगिनो यं स्तुवन्ति ॥ २. सुधागर्व खर्वन्त्यभिमुख हृषीक प्रणयिनः, क्षणं ये तेऽप्यूद्धर्व विषमपवदन्त्यंग ! विषयाः । तएवाविर्भूय प्रतिचितधनायाः खलु तिरोभवन्त्यन्धास्तेभ्यो ऽप्यहह किमु कर्षन्ति विपदः ॥' इस काव्य पर कवि ने स्वोपज्ञवृत्ति भी लिखी थी । भरत पर अन्य रचनाओं में जयशेखरसूरिकृत जैनकुमारसंभव महाकाव्य" ( लगभग १४६४ वि०सं० ) है जिसका वर्णन शास्त्रीय काव्यों के प्रसंग १. जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३४६. २. अनगारधर्मामृत टीका, पृ० ६३३. मूलाराधना- टीका, पृ०. १०६५. देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार संस्था, सूरत, १९४६. ४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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