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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास चुनी हैं। उनमें से केवल दो का ही कुछ परिचय प्राप्त हुआ है, शेष का उल्लेख मात्र । महावीरचरित: ___ यह अन्तिम तीर्थंकर महावीर पर संस्कृत में लिखे गये स्वतंत्र चरितों में प्राचीन है। इसे अपर नाम से वधमानचरित्र या सन्मतिचरित्र भी कहते हैं। इसमें १८ सर्ग हैं। इस ग्रन्थ का उल्लेख धवल कवि के अपभ्रंश हरिवंशपुराण में किया गया है। रचयिता एवं रचनाकाल-इस ग्रन्थ की हस्तलिखित प्रतियों में से एक की प्रशस्ति में कहा गया है कि इसके रचयिता असग कवि हैं जिन्होंने शक सं० ९१० ( वि० सं० १०४५ के लगभग ) में आठ अन्य चरित्रों की रचना की थी। इनके लिखे चन्द्रप्रभचरित्र व-शान्तिनाथचरित्र ही और उपलब्ध हैं । वर्धमानचरित: इसमें कुल मिलाकर २० अधिकार हैं जिनमें से प्रथम ६ सर्गों में महावीर के पूर्वभवों का और शेष १४ में गर्भकल्याण से लेकर निर्वाण प्राप्ति तक विस्तार से जीवनचरित्र दिया गया है। इसकी भाषा सरल एवं काव्यमय है। वर्णन-शैली प्रवाहमय है। इसका परिमाण ३०३५ श्लोक है। इसके अपर नाम महावीरपुराण एवं वर्धमानपुराण भी हैं। रचयिता सकलकीर्ति का परिचय पहले दिया जा चुका है। __ महावीर के अन्य चरितकारों में पद्मनन्दि, केशव और वाणीवल्लभ की कृतियों का उल्लेख मिलता है। जैन काव्यकारों ने न केवल अपने पुरातन तीर्थंकरों के स्वतंत्र चरित लिखे हैं बल्कि आगामी तीर्थंकरों में से एक पर काव्य भी लिखा है जिसका परिचय इस प्रकार है - १. पं० खूबचन्द्रकृत हिन्दी अनुवाद सहित-मूलचन्द किसनदास कापड़िया, सूरत, १६१८; मराठी अनुवाद-सोलापुर, १९३१. २. जिनरत्नकोश, पृ० ३४३, राजस्थान के जैन सन्त, पृ० १३; नन्दलाल जैन कृत हिन्दी अनुवाद-जिनवाणी प्रचारक कार्यालय, कलकत्ता। ३. जिनरत्नकोश, पृ० ३४३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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