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पौराणिक महाकाव्य
कथाओं की योजना भी इसमें की गई है । इन अवान्तर कथाओं के कारण कथावस्तु में शिथिलता आ गई है। प्रथम तीन सर्गों में कथा द्रुतगति से आगे बढ़ती गई है परन्तु चतुर्थ सर्ग से कथा की गति मन्थर हो जाती है। छठे सर्ग से तो कथा की गति बहुत ही शिथिल-सी दीख पड़ती है। इस काव्य में श्वेताम्बर जैन मान्यता के अनुसार मल्लिनाथ को स्त्री माना गया है।
इसमें यद्यपि अनेक पात्र हैं पर मल्लि के चरित्र के अतिरिक्त अन्य किन्हीं चरित्रों का विकास नहीं हुआ है । प्रकृति-चित्रण भी खूब किया गया है । जिसमें पर्वत, समुद्र, षटऋतु, सूर्योदय, सूर्यास्त, उद्यान-क्रीड़ा आदि का वर्णन स्वाभाविक एवं भव्य है। पौराणिक महाकाव्य होने से इस चरित्र में अलौकिक एवं चमत्कारिक तत्त्वों का समावेश भी किया गया है। यत्रतत्र धार्मिक तत्त्व तथा विविध ज्ञान भी कवि ने इस काव्य में प्रदर्शित किये हैं।
इस चरित की भाषा प्रसादगुगमयी, सरल और भावपूर्ण है। भाषा पर कवि का अच्छा अधिकार दिखाई पड़ता है। प्रसंगों के अनुसार वह कहीं मधुर
और स्निग्ध है तो कहीं ओजपूर्ण, तो कहीं गम्भीर है। यहाँ भाषा का व्यावहारिक रूप दिखाई पड़ता है। उसमें देशी भाषा से प्रभावित शब्दों का प्रयोग हआ है। इस काव्य में जनप्रचलित लोकोक्तियों और सूक्तियों का प्रयोग भी प्रचुरता से हुआ है। इस चरित की रचना अनुष्टुभ छन्द में की गई है पर सर्गान्त में छन्द परिवर्तन कर दिया गया है। इस समस्त काव्य में अनुष्टुभ , शार्दूलविक्रीडित, मालिनी, इन्द्रवज्रा और शिखरिणी-इन पाँच छन्दों का प्रयोग हुआ है। अलंकार योजना में कवि ने कोई विशेष प्रयास नहीं किया है फिर भी कहीं-कहीं उपमा और रूपक अलंकारों के अच्छे उदाहरण मिल जाते हैं। कवि का शब्दालंकारों की ओर झुकाव अधिक है।
मल्लिनाथचरित का रचना-परिमाण प्रकाशित प्रति के अनुसार ४३५५ श्लोक सिद्ध होता है। जिनरलकोश में इसका परिमाण ४२५० श्लोक दिया गया है।
१. वही, सर्ग १. ११६-१८ ७. २४०-२४३, ८. १२७ आदि । २. वही, १. ५१; २. ६१ २. ३९०, २. ४९८, ७. ५६३, ८.३०६. ३. वही, ७. १६४, २. १०३, २. ४१२७. २३३, ८.३३६, ९. २८७. ४. वहीं, सर्ग ८. ५३७, ७. १०२५, ३. ६.
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