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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास प्रमाण ६५०० श्लोक है। इस ग्रन्थ की ग्रन्थकार द्वारा लिखी गई सं० १५३५ की एक प्रति लालबाग, बम्बई के एक भण्डार से मिली है। इसके ६ प्रस्तावों में शान्तिनाथ तीर्थकर के १२ भवों का वर्णन है । वर्णन क्रम में अनेक उपदेशात्मक कहानियाँ भी आ गई हैं जिससे ग्रन्थ का आकार बहुत बढ़ गया है। बीच बीच में प्रसंगवश ग्रन्थान्तरों से लेकर प्राकृत और संस्कृत पद्यों का उपयोग किया गया है। ग्रन्थ के समाप्त होते-होते रत्नचूड़ की संक्षिप्त कथा भी दी गई है।
शान्तिनाथ विषयक अन्य रचनाएँ ज्ञानसागर (सं० १५१७ ), अंचलगच्छ के उदयसागर (ग्रन्थान २७००), वत्सराज (हीरा० हंस० जामनगर १९१४ प्रकाशित ), हर्षभूषणगणि, कनकप्रभ (ग्रन्थान ४८५), रत्नशेखरसूरि (ग्रन्थान ७०००), भट्टा० शान्तिकीर्ति, गुणसेन, ब्रह्मदेव, ब्रह्मजयसागर और श्रीभूषण (सं० १६५९ ) आदि की मिलती हैं। धर्मचन्द्रगणि ने शान्तिनाथराज्याभिषेक और हर्षप्रमोद के शिष्य आनन्दप्रमोद ने शान्तिनाथविवाह नामक रचनाएँ भी लिखी हैं। कुछ अज्ञात नामा व्यक्तियों की भी रचनाएँ मिलती हैं। मेघविजयगणि (१८ वीं शती) का शान्तिनाथचरित काव्य उपलब्ध है जो नेषधीयचरित के पादों के आधार से शान्तिनाथ का जीवनचरित प्रस्तुत करता है। उसका विवेचन हम पादपूर्ति-साहित्य के प्रसंग में करेंगे। ___ सत्तरहवें तीर्थकर कुन्थुनाथ पर पद्मप्रभ शिष्यं विबुधप्रभसूरि (१३ वीं शती) की कृति (ग्रन्थान ५५५५ ) का उल्लेख मिलता है । अठारहवें अरनाथ पर अभीतक कोई रचना उपलब्ध नहीं हुई है। मल्लिनाथचरित:
उन्नीसवें तीर्थंकर पर अनेक संस्कृत रचनाएँ उपलब्ध हैं। उनमें प्रथम है आठ सों का 'विनयांकित' महाकाव्य । सर्गों का नाम वर्ण्यविषय के आधार पर किया गया है। इस काव्य में मिथिला राजकुमारी मल्लि के अतिरिक्त साकेत नृप प्रतिबुद्ध, चम्पानृप चन्द्रच्छाय, श्रावस्ति नरेश रुक्मी, वाराणसी भूप शंख, हस्तिनापुरेश अदीनशत्रु तथा कांपिल्यराज जितशत्रु के भवान्तरों का वर्णन किया गया है। प्रत्येकबुद्ध रत्नचन्द्रकथा, सत्य हरिचन्द्र कथा आदि अनेक अवान्तर
१. जिनरलकोश, पृ० १८०-३८१. २. वही, पृ० ९१. ३. यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, सं० २९, वी० सं० २४३८.
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