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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कर्ता तथा रचनाकाल-इसके रचयिता विनयचन्द्रसूरि हैं जिनके विषय में उनकी अन्य कृति पार्श्वनाथचरित के वर्णन में कहा गया है। मल्लिनाथचरित की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इस ग्रन्थ की रचना रविप्रभसूरि के शिष्य नरेन्द्रप्रभ तथा नरसिंहसूरि के अनुरोध पर हुई है। मल्लिनाथचरित्र का संशोधन कनकप्रभसूरि के शिष्य प्रद्युम्नसूरि ने किया था।
अन्य ग्रन्थकारों में शुभवर्धनगणि, विजयसूरि ( रचना ४६२० ग्रन्थान प्रमाण ), भट्टा० सकलकीर्ति और भट्टा. प्रभाचन्द्रकृत' मल्लिनाथचरित उपलब्ध होते हैं। भट्टारक सकल कीर्ति-कृत मल्लिनाथचरित में ७ सर्ग हैं जिनमें ८७४ श्लोक हैं।
बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ पर भी आठ के लगभग संस्कृत काव्यों का निर्माण हुआ है। उनमें से एक अममस्वामिचरित आदि ग्रन्थों के रचयिता पौर्णमिकगच्छीय मुनिरत्नसूरिकृत (लग० सं० १२५२) ६८०६ श्लोक-प्रमाण है। यह काव्य २३ सर्गों में विभक्त है। अबतक यह अप्रकाशित है। सूरि का परिचय इनकी प्रकाशित कृति अममस्वामि-चरित के साथ दिया जा रहा है। द्वितीय मुनिसुव्रतचरित विबुधप्रभ के शिष्य पद्मप्रभसूरिप्रणीत है जो सं० १२९४ में रचा गया था। इसका परिमाण ५५५५ श्लोक है। कर्ता की अन्य रचना कुन्थुचरित सं० १३०४ की मिलती है। यही ग्रन्थकार पार्श्वस्तव, भुवनदीपक आदि के भी कर्ता हैं या कोई दूसरे पद्मप्रभ इस बात का अबतक निश्चय नहीं हो सका है।
तृतीय रचना विशेष उल्लेखनीय है अतः उसका परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है।
१. वही, प्रशस्ति, श्लोक ९. २. होरालाल हंसराज, जामनगर, १९३०. ३. जिनवाणी प्रचारक कार्यालय, कलकत्ता, सं० १९७९, हिन्दी-गजाधरलाल
शास्त्री । इसकी प्राचीन ह. लि. प्रति सं० १५१५ की मिलती है। . जिनरत्नकोश, पृ० ३०३. ५. वही, पृ. ३०१. ६. वही. ७. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० ३९६.
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