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________________ पौराणिक महाकाव्य मथुरा, काशी, आमलकल्पा आदि नगरों में विहार और धर्मोपदेश का वर्णन है । अन्त में सम्मेदशिखर पर पहुँच मोक्ष पाने का वृत्तान्त है । ___ इस प्राकृतचरित में संस्कृत के गुणभद्र रचित उत्तरपुराण में दिये गये पाश्वनाथ चरित से कुछ बातों में अन्तर है यथा मरुभूति की पत्नी वसुन्धरा कमठ की ओर स्वयं आकृष्ट हुई। इसमें ६ठे भव के वज्रनाभ के विवाह के प्रसंग में जो युद्ध का वर्णन है वह रघुवंश के इन्दुमती-अज के स्वयंवर में हुए युद्ध की याद दिलाता है उसी तरह आठवें भव के कनकबाहु चक्रवर्ती का खेचरराज की पुत्री पद्मा से विवाह का प्रसंग अभिज्ञान-शाकुंतल में दुष्यन्त-शकुंतला के विवाह का स्मरण दिलाता है। ___ रचयिता और रचनाकाल-इस चरित ग्रन्थ के कर्ता देवभद्राचार्य हैं । ये विक्रम की १२वीं शताब्दी के महान् विद्वान् एवं उच्चकोटि के साहित्यकार थे । इनका नाम आचार्य पदारूढ़ होने के पहले गुणचन्द्रगणि था। उस समय संवत् ११३९ में श्री महावीरचरियं नामक विस्तृत १२०२४ श्लोक-प्रमाण ग्रन्थ रचा । दूसरा ग्रन्थ कथारत्नकोष है जो आचार्य पदारूढ़ होने के बाद वि० सं० ११५८ में रचा था। प्रस्तुत पासनाहचरियं की रचना उनने वि० सं० ११६८ में गोवर्द्धन श्रेष्ठि के वंशज वीरभेष्ठि के पुत्र यशदेव श्रेष्ठि की प्रेरणा से की थी। इस ग्रन्थ की प्रशस्ति में लेखक की गुर्वावली इस प्रकार दी गई है :चन्द्रकुल वज्रशाखा में वर्धमानसूरि हुए। उनके दो शिष्य थे जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि । जिनेश्वरसूरि के शिष्य अभयदेवसूरि और उनके शिष्य प्रसन्नचन्द्र हुए। प्रसन्नचन्द्र के शिष्य सुमतिवाचक और इनके शिष्य थे देवभद्रसूरि । १. महावीरचरिय: ____ अन्तिम तीर्थंकर महावीर के जीवन पर जो प्राकृत रचनाएँ उपलब्ध हैं उनमें यह सर्व प्रथम है। यह एक गद्य-पद्यमय काव्य है जो आठ प्रस्तावों (सर्गों) में विभाजित है और परिमाण में १२०२५ श्लोक प्रमाण है।' इसके प्रारंभिक चार सर्गों में भगवान् महावीर के पूर्वभवों का वर्णन है और अन्तिम चार में उनके वर्तमान भव का। इस पर तथा इनकी अन्य कृति पासनाहचरियं पर कालिदास, भारवि और माघ के संस्कृत काव्यों का पूर्ण प्रभाव लक्षित होता है। इस महाराष्ट्री प्राकृत प्रधान रचना में यत्र-तत्र संस्कृत के तथा अपभ्रंश के पद्य 1. जिनरत्नकोश, पृ० ३०६; प्रकाशित-देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, बम्बई, सन् १९२९, गुजराती अनुवाद-जैन मात्मानन्द सभा, वि० सं० १९९४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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