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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास उद्धृत हैं। इसमें छन्दों की विविधता दृष्टव्य है। प्रचुरमात्रा में तद्भव और तत्सम शब्दों का प्रयोग देशी शब्दों के बदले में किया गया है। __ प्रथम प्रस्ताव में सम्यक्त्व प्राप्ति का वर्णन है। दूसरे में प्रथम पूर्व भव के प्रसंग में ऋषभ, भरत, बाहुबलि एवं मरीचि के भवों का निरूपण है। तृतीय में विश्वभूति की वसन्तक्रीड़ा, रणयात्रा एवं वैराग्य का वर्णन है। इसी में नारायण त्रिपृष्ट का प्रतिनारायण अश्वग्रीव के साथ युद्ध और चक्रवर्ती प्रियमित्र का दिग्विजय एवं प्रव्रज्या वर्णन है। चतुर्थ प्रस्ताव में प्रियमित्र के जीव का नन्दन नाम से नृप होना और उसके द्वारा प्रोठिल मुनि से नरविक्रम का चरित पूछना । यह चरित बड़ा ही रोचक है। नन्दन नृप का जीव ही क्षत्रियकुण्ड के नरेश सिद्धार्थ के यहाँ त्रिशला से महावीर के रूप में जन्म ग्रहण करता है। इस प्रस्ताव में मंत्र, तंत्र, विद्यासाधन तथा वाममार्गिय । और कापालिकों के क्रियाकाण्ड का वणन है। इसी प्रस्ताव में भग० महावीर के २८वें वर्ष में उनके माता-पिता का स्वर्गवास होने और बड़े भाई नन्दिवर्धन का राज्याभिषेक होने एवं बड़े भाई से अनुमति लेकर दीक्षा ग्रहण करने का वर्णन है।
पाँचवें प्रस्ताव में शूलपाणि यक्ष और चण्डकौशिक सर्प को प्रबुद्ध करने का वृत्तान्त है। छठे प्रस्ताव में आजीवक मत के प्रवर्तक मंखलीपुत्र गोशाल का महावीर के साथ संबंध का वर्णन है। सातवें में महावीर के परीषह-सहन और केवलज्ञान प्राप्ति का निरूपण है। आठवें में महावीर के निर्वाण-लाभ का प्ररूपण है। इसमें महावीर के उपदेश, गणघरों के वर्णन, चतुर्विध संघ की स्थापना, महावीर के दामाद जमालि की दीक्षा, उसके द्वारा निलव, गोशालक द्वारा श्रावस्ती में तेजोलेश्या छोड़ना आदि अन्यान्य बातों का विस्तार से वर्णन है।।
___ इस काव्य में अनेकों अवान्तर कथायें दी गई हैं तथा नगर, वन, अटवी, विवाह-विधि, उत्सव, विद्यासिद्धि आदि के वर्णन द्वारा बड़ा ही रोचक बनाया गया है।
यह एक गद्य-पद्यमय रचना है। कवि को वर्णन के अनुकूल जब जैसी आवश्यकता हुई गद्य-पद्य का प्रयोग करने की स्वतंत्रता रही है। ____रचयिता और रचनाकाल-इस महत्त्वपूर्ण कृति के रचयिता गुणचन्द्रसूरि हैं जो आचार्य पद पाने के बाद देवभद्रसूरि कहलाने लगे थे। इन्होंने अपने छत्रावली (छत्राल) निवासी सेठ शिष्ट और वीर की प्रार्थना पर वि० सं० ११३९ ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया सोमवार के दिन इस ग्रन्थ की रचना की थी। प्रशस्ति में शिष्ट और वीर के परिवार का परिचय दिया गया है।
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