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व्याकरण
सारखतरूपमाला:
'सारस्वतव्याकरण' पर पद्मसुन्दरगणि ने 'सारस्वतरूपमाला' नामक कृति बनाई है। इसमें धातुओं के रूप बताये हैं। इस विषय में ग्रन्थकार ने स्वयं लिखा है:
'सारस्वतक्रियारूपमाला श्रीपद्मसुन्दरैः।
संहब्धाऽलंकरोत्वेषा सुधिया कण्ठरुन्दली ।। अहमदाबाद के लालमाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर में इसकी वि० सं० १७४० में लिखित ५ पत्रों की प्रति है। क्रियापन्द्रिका:
'सारस्वतव्याकरण' पर खरतरगच्छीय गुणरत्न ने वि० सं० १६४१ में 'क्रियाचन्द्रिका' नामक वृति की रचना की है, जिसकी प्रति बीकानेर के भवनभक्ति भंडार में है। रूपरत्नमाला:
'सारस्वतव्याकरण' पर तपागच्छीय भानुमेरु के शिष्य मुनि नयसुन्दर ने वि० सं० १७७६ में 'रूपरत्नमाला' नामक प्रयोगों की साघनिकारूप रचना १४००० श्लोक-प्रमाण की है। इसकी एक प्रति बीकानेर के कृपाचन्द्रसूरि ज्ञान-भंडार में है। दूसरी प्रति अहमदाबाद के लालमाई दलपतमाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर में है। इसके अन्त में ४० श्लोकों की प्रशस्ति है। उसमें उन्होंने इस प्रकार निर्देश किया है :
प्रथिवा नयसुन्दर इति नाम्ना वाचकवरेण च तस्याम्। सारस्वतस्थितानां सूत्राणां बार्तिकं त्वलिखत् ।। ३७ ॥ श्रीसिद्धहेम-पाणिनिसम्मतिमाधाय सार्थकाः लिखिताः। ये साधवः प्रयोगास्ते शिशुहितहेतवे सन्तु ।। ३८ ॥ गुहवक्त्र-हयविन्दु (१७७६) प्रमितेऽन्दे शुक्लतिथिराकायाम्।
सद्परत्नमाला समर्थिता शुद्धपुष्यार्के ।। ३९ ॥ धातुपाठ-धातुतरङ्गिणी:
'सारस्वतव्याकरण' संबंधी 'धातुपाठ' की रचना नागोरीतपागच्छीय आचार्य हर्षकीर्तिरि के की है और उसपर 'धातुतरंगिणी' नाम से स्वोपज्ञ वृत्ति की रचना भी उन्होंने की है। ग्रन्थकार ने लिखा है :
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