________________
५८
जैन साहित्य का वृहद् इतिहास यशोनन्दिनी: ___ 'सारस्वतव्याकरण' पर दिगंबर मुनि धर्मभूषण के शिष्य यशोनन्दी नामक मुनि ने अपने नाम से ही 'यशोनन्दिनी नामक टीका की रचना की है। रचनासमय शात नहीं है । कर्ता ने अपना परिचय इस प्रकार दिया है :
राजद्धाजविराजमातचरणश्रीधर्मसभूषण- ।
स्तत्पट्टोदयभूधरधुमणिना श्रीमद्यशोनन्दिना ।। विद्वचिन्तामणि :
'सारस्वतव्याकरण' पर अंचलगच्छीय कल्याणसागर के शिष्य मुनि विनयसागरथरि ने 'विचिन्तामणि' नामक पावर टीका अन्य की रचना की है। इसमें कर्ता ने अपना परिचय इस प्रकार दिया है:
श्रीविधिपक्षगच्छेशाः सूरिकल्याणसागराः। वेषां शिष्यवराचार्यैः सूरिविनयसागरैः॥ २४ ॥ सारखतस्य सूत्राणां पधबन्धर्विनिर्मितः ।
बिद्धचिन्तामणिग्रन्थः कण्ठपाठस्य हेतवे ॥ २५ ॥ अहमदाबाद के लालमाई दलपतमाई मारतीय संस्कृति विद्यामंदिर में इसकी वि. सं. १८३७ में लिखित ५ पत्रों की प्रति है। दीपिका (सारस्वतव्याकरण-टीका):
'सारस्वतन्याकरण' पर विनयसुन्दर के शिष्य मेघरत्न ने वि० सं० १५३६ में दीपिका' नामक वृत्ति की रचना की है, इसे कहीं 'मेघीवृत्ति' भी कहा है । इन्होंने अपना नाम इस प्रकार बताया है :
नत्वा पाश्र्व गुरुमपि तथा मेघरत्नाभिधोऽहम् ।
टीकां कुर्वे विमलमनसं भारतीप्रक्रियां ताम्। इस ग्रन्थ की वि० सं० १८८६ में लिखित १६२ पत्रों की प्रति (सं० ५९७८) और १७ वीं सदी में लिखी हुई ६८ पत्रों की प्रति ( सं० ५९७९ ) अहमदाबादस्थित लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर में है ।
१. इसकी वि० सं० १६९५ में लिखित ३० पत्रों की प्रति अहमदाबाद के
लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर के भंडार में है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org