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________________ व्याकरण अजितशान्ति-उपसर्गहरस्तोत्र, भयहरस्तोत्र आदि सप्तस्मरण टीका (सं. १३६५ )। अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका की स्याद्वादमबरी नामक टीका-ग्रन्थ की रचना में आचार्य जिनप्रभसूरि ने सहायता की थी। सं० १४०५ में प्रवन्धकोश' के का राजशेखरसूरि की 'न्यायकन्दली' में और रुद्रपल्लीय संघतिलकसूरि की सं० १४२२ में रचित 'सम्यक्त्वसप्तति-वृत्ति' में भी सहायता की थी। दिल्ली का साहिमहम्मद आचार्य जिनप्रभसूरि को गुरु मानता था । २. कातन्त्रविभ्रम-टीका : दूसरी 'कातन्त्रविभ्रम-टीका' चारित्रसिंह नामक मुनि ने वि सं० १६३५ में रची है । इसकी प्रति जैसलमेर-भंडार में है। कर्ता के विषय में कुछ शात नहीं हुआ है। कातन्त्रव्याकरण पर इनके अलावा त्रिलोचनदासकृत 'वृत्तिविवरणपक्षिका', गाल्हणकृत 'चतुष्कवृत्ति', मोक्षेश्वरकृत 'आख्यातवृत्ति आदि टीकाएँ भी प्राप्त हैं। 'कालापकविशेषव्याख्यान' मी मिलता है। एक' 'कौमारसमुच्चय' नाम की ३१०० श्लोकप्रमाण पद्यात्मक टीका भी मिलती है। सारस्वत-व्याकरण : . . 'सारस्वत-व्याकरण' के रचविता का नाम है अनुभूतिस्वरूपाचार्य । वे कब हुए यह निश्चित नहीं है। अनुमान है कि बे करीब १५ वी शताब्दी में हुए थे। जैनेतर होने पर भी जैनों में इस व्याकरण का पठन-पाठन विशेष होता रहा है, यही इसकी लोकप्रियता का प्रमाण है। इसमें कुल ७०० सूत्र है। रचना सरल और सहजगम्य है। इस पर कई जैन विद्वानों ने टीका-अंन्यों की रचना की है ! यहां २३ जैन विद्वानों को टीकाओं का परिचय दिया जा रहा है। सारस्वतमण्डन: श्रीमालज्ञातीय मंत्री मंडन ने भिन्न-भिन्न विषयों पर मंडनान्तसंज्ञक कई ग्रंथों की रचना की हैं। इनमें 'सारस्वतमण्डन' नाम से 'सारस्वत-व्याकरण' पर एक टीका की रचना १५ वीं शताब्दी में की है।' १. इस ग्रंथ की प्रतियां बीकानेर, बालोतरा और पाटन के भंगरों में है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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