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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास मूल कारिका के कर्ता कौन थे, यह ज्ञात नहीं हुआ है । कारिकाओं में व्या रण के विषय में भ्रम उत्पन्न करने वाले कई प्रयोगों को निबद्ध किया गया हैं। टीकाकार आचार्य जिनप्रभसूरि ने 'कातंत्र' के सूत्रों द्वारा प्रयोगों को सिद्ध करके भ्रम निरास करने का प्रयत्न किया है । ५४ आचार्य जिनप्रभसूरिं लघुखरतरगच्छ के प्रवर्तक आचार्य जिनसिंहसूर के शिष्य थे । वे असाधारण प्रतिभाशाली विद्वान् थे । उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की है। उनका यह अभिग्रह था कि प्रतिदिन एक स्तोत्र की रचना करके ही निरवद्य आहार ग्रहण करूंगा। इनके यमक, श्लेष, चित्र, छन्दविशेष आदि नई-नई रचनाशैली से रचे हुए कई स्तोत्र प्राप्त हैं । इन्होंने इस प्रकार ७०० स्तोत्र तपागच्छीय आचार्य सोमतिलकसूरि को भेंट किये थे । इनके रचे हुए ग्रंथों और कुछ स्तोत्रों के नाम इस प्रकार हैं : गौतमस्तोत्र, चतुर्विंशतिजिनस्तुति, चतुर्विंशतिजिनस्तव, जिनराजस्तव द्वयक्षरनेमिस्तव, पञ्चपरमेष्ठिस्तव, पार्श्वस्तव, वीरस्तव, शारदास्तोत्र, सर्वशक्तिस्तव, सिद्धान्तस्तव, ज्ञानप्रकाश, धर्माधर्मविचार, परमसुखद्वात्रिंशिका प्राकृत संस्कृत - अपभ्रंशकुलक चतुर्विधभावना कुलक चैत्य परिपाटी, तपोटमतकुट्टन, नर्मदा सुन्दरीसंधि, Jain Education International नेमिनाथजन्माभिषेक, मुनिसुव्रतन्माभिषेक, पट्पञ्चाशद्दिककुमारिकाभित्रक नेमिनाथरास, प्रायश्चित्तविधान, युगादिजिनचरित्र कुलक, स्थूलभद्रफाग, अनेक-प्रबन्ध अनुयोग-चतुष्कोपेतगाथा, विविधतीर्थकल्प ( सं० १३२७ से १३८९ तक ), आवश्यक सूत्रावचूरि ( पडावश्यकटीका ), सूरिमन्त्रप्रदेशविवरण, द्वयाश्रयमहाकाव्य ( श्रेणिकचरित) ( सं० १३५६ ), विधिप्रपा ( सामाचारी ) (सं० १३६३), संदेहविषौषधि ( कल्पसूत्रवृत्ति ) ( सं० १३६४ ), साधु प्रतिक्रमणसूत्र वृत्ति, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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