________________
व्याकरण
५३
कातन्त्रदीपक-वृत्ति
'कातन्त्रव्याकरण' पर मुनीश्वरसूरि के शिष्य हर्षचन्द्र ने 'कातन्त्रदीपक' नाम से वृत्ति की रचना की है। मंगलाचरण जैन है, कर्ता हर्षचन्द्र है या अन्य कोई यह निश्चित रूप से जानने में नहीं आया। इसकी हस्तलिखित प्रति बीकानेर स्टेट लायब्रेरी में है।
___ 'कातन्त्रव्याकरण' के आधार पर आचार्य धर्मघोषसूरि ने २४००० श्लोक प्रमाण 'कातन्त्रभूषण' नामक व्याकरणग्रन्थ को रचना की है, ऐसा 'बृहट्टिप्पणिका' में उस्लेख है। वृत्तित्रयनिबंध :
'कातन्त्रव्याकरण' के आधार पर आचार्य राजशेखरसूरि ने 'वृत्तित्रयनिबंध' नामक ग्रन्थ की रचना की है, ऐसा उल्लेख 'बृहट्टिप्पणिका' में है। कातन्त्रवृत्ति-पञ्जिका
'कातन्त्रव्याकरण' की 'कातन्त्रवृत्ति' पर आचार्य जिनेश्वरसूरि के शिष्य सोमकीर्ति ने पञ्जिका की रचना की है। इसकी प्रति जैसलमेर के भंडार में है। कातन्त्ररूपमाला:
'कातन्त्रव्याकरण' के आधार पर दिगम्बर भावसेन घिद्य ने 'कातन्त्ररूपमाला' की रचना की है। कातन्त्ररूपमाला-लघुवृत्ति :
'कातन्त्रव्याकरण' के आधार पर रची गई 'कातन्त्र रूपमाला' पर 'लघुवृत्ति' की रचना किसी दिगंबर मुनि ने की है। इसका उल्लेख 'दिगंबर जैन अन्यकर्ता और उनके ग्रन्थ पृ० ३० में है।
पृथ्वीचंद्रसूरि नामक किसी जैनाचार्य ने भी इस पर टीका का निर्माण किया है । इनके बारे में अधिक शात नहीं हुआ है। १. कातन्त्रविभ्रम-टीका: ___हेमविभ्रम' में छपी हुई मूल २१ कारिकाओं पर आचार्य जिनप्रभसूरि ने योगिनीपुर (देहली ) में कायस्थ खेतल की विनती से इस टीका की रचना वि० सं० १३५२ में की है। १. यह ग्रंथ जैन सिद्धातभवन, मारा से प्रकाशित है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org