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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास ____ 'जिनरलकोश' (पृ० ८४ ) में कातन्त्रोत्तर के सिद्धानन्द, विजयानन्द और विद्यानन्द-ये तीन नाम दिये गये हैं। इसके कर्ता विजयानन्द अपर नाम विद्यानन्दसूरि का उल्लेख है। यह व्याकरण समास-प्रकरण तक ही मिलता है। पिटर्सन की चौथी रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि इस व्याकरण की ताडपत्रीय प्रतियां जैसलमेर-भंडार में है। .
'जैनपुस्तकप्रशस्तिसंग्रह' (पृ० १०६) में इस व्याकरण का उल्लेख इस प्रकार है : इति विजयानन्दविरचिते कातन्त्रोत्तरे विद्यानन्दापरनाम्नि तद्धितप्रकरणं समाप्तम , सं० १२०८ । कातन्त्रविस्तर:
'कातन्त्रव्याकरण' के आधार पर रचे गये 'कातन्त्रविस्तर' ग्रन्थ के कर्ता वर्धमान हैं। आरा के विद्याभवन में इसकी अपूर्ण हस्तलिखित प्रति है, जो मूडबिद्री के जैनमठ के ग्रंथ-भंडार की एकमात्र तालपत्रीय प्रति से नकल की गई है। इसकी रचना वि० सं० १४५८ से पूर्व मानी जाती है।
ख० बाबू पूर्णचन्द्रमी नाहर ने 'जैन सिद्धांत-भास्कर' भा० २ में 'धार्मिक उदारता' शीर्षक अपने लेख में इन वर्धमान को श्वेतांबर बताया है। यह किस आधार से लिखा है, इसका निर्देश उन्होंने नहीं किया। ___ गुजरात के राजा कर्णदेव के पुरोहित के एक शिष्य का नाम वर्धमान था, जिन्होंने केदार भट्ट के 'वृत्तरत्नाकर' पर टीका ग्रन्थ की रचना की थी । ग्रन्थ की समाप्ति में इस प्रकार लिखा है : 'इति श्रीमस्कर्णदेवोपाध्यायश्रीवर्धमानविरचिते कातन्त्रविस्तरे........।
चुरु के यति ऋद्धिकरणजी के भंडार में इसकी प्रति है। बालबोध-व्याकरण: __'जैन ग्रन्थावली' (पृ० २९७) के अनुसार अञ्चलगच्छीय मेरुतुंगसूरि ने कातन्त्रसूत्रों पर इस 'बालबोधव्याकरण' की रचना वि० सं० १४४४ में ८ अध्यायों में २७५ श्लोक-प्रमाण की है। इसमें कहा गया है कि वि० १५ वीं शती में विद्यमान मेरुतुंग ने ४८० और ५७९ श्लोक-प्रमाण एक-एक वृत्ति की रचना की है। उनमें प्रथम वृत्ति छः पादात्मक है। उन्होंने २११८ श्लोक-प्रमाण 'चतुष्क-टिप्पण' और ७६७ श्लोक-प्रमाण 'कृवृत्ति-टिप्पण' की रचना भी की है। तदुपरांत १७३४ श्लोक-प्रमाण 'आख्यातवृत्ति-दुंढिका' और २२९ श्लोकप्रमाण 'प्राकृत-वृत्ति' की रचना की है। इन सातो ग्रन्थों की हस्तलिखित प्रतियां पाटन के भंडार में विद्यमान हैं।
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