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________________ व्याकरण क्रियाकलाप: भावडारगच्छीय आचार्य जिनदेवसूरि ने पाणिनीय व्याकरण के धातुओं पर 'क्रियाकलाप' नामक एक कृति की रचना की है। वे आचार्य भावदेवसूरि के गुरु थे, जिन्होंने वि० सं० १४१२ में 'पार्श्वनाथचरित्र' की रचना की है, अतः आचार्य जिनटेवसूरि ने वि० सं० १४१२ के पूर्व या आस-पास के समय में इस कृति की रचना की होगी ऐसा अनुमान होता है। ' इस ग्रंथ में 'भ्वादि' धातुओं से लेकर 'चुरादि' गण तक के धातुओं की साधनिका के संबंध में विवेचन किया गया है। यह ग्रंथ प्रकाशित नहीं है।' अनिटकारिका : ___ व्याकरण के धातुओं संबंधी यह ग्रंथ अज्ञातकर्तृक है। इसकी प्रति लींबडी के भंडार में विद्यमान है। अनिट्कारिका-टीका : 'अनिटकारिका' पर किसी अज्ञात विद्वान् ने टीका लिखी है, जिसकी प्रति लीबडी के भंडार में मौजूद है। अनिटकारिका-विवरण : खरतरगच्छीय क्षमाकल्याण मुनि ने अनिटकारिका पर 'विवरण' की रचना की है । इसका उल्लेख पिटर्सन की रिपोर्ट सं० ४, प्रति सं० ४७८ में है। उणादिनाममाला : मुनि शुभशीलगणि ने 'उणादिनाममाला' नामक ग्रंथ की रचना १७ वी शती में की है। इसमें उणादि प्रत्ययों से बने शब्दों का संग्रह है। यह ग्रंथ अप्रकाशित है। समाप्तप्रकरण: आचार्य जयानन्दसूरि ने 'समासप्रकरण' नामक एक कृति बनाई है। इसमें समासों का विवेचन है। यह ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ है। १. इसकी वि० सं० १५२० में लिखित ८१ पत्रों की प्रति (सं० १४२१) लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अहमदाबाद में है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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