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व्याकरण
- मांडवगढ़ निवासी मंत्री मंडन ने 'उपसर्गमण्डन' नामक ग्रन्थ की वि० सं० १४९२ में रचना की है। वे आलमशाह अपर नाम हुशंग गोरी के मंत्री थे। मंत्री होने पर भी वे विद्वान् और कवि थे। उनके वंश आदि के विषय में महेश्वरकृत 'काव्यमनोहर' ग्रन्थ अच्छा प्रकाश डलाता है। उनके प्रायः सभी ग्रंथ 'मंडन' शब्द से अलंकृत हैं। . __उनके अन्य ग्रंथ इस प्रकार हैं : १. अलंकारमंडन, २. कादम्बरीमंडन, ३. काव्यमंडन, ४. चम्पूमंडन, ५. शृङ्गारमंडन ६. संगीतमंडन और ७. सारस्वतमंडन । इनके अतिरिक्त उन्होंने ८. चन्द्रविजय और ९. कविकल्पद्रुमस्कंध-ये दो कृतियां भी रची हैं। धातुमञ्जरी: ___ तपागच्छीय उपाध्याय भानुचन्द्रसूरि के शिष्य सिद्धिचन्द्रगणि ने वि० सं० १६५० में 'धातुमञ्जरी' नामक ग्रंथ की रचना की है। यह पाणिनीय धातुपाठसंबंधी रचना है।
सिद्धिचन्द्र ने निम्नलिखित ग्रंथों की भी रचना की थी : १. ( हैम) अनेकार्थनाममाला, २. कादम्बरी-टीका (अपने गुरु भानुचन्द्रगणि के साथ ), ३. सप्तस्मरणस्तोत्र-टीका, ४. वासवदत्ता-टीका, ५. शोभनस्तुति-टीका आदि । मिश्रलिंगकोश, मिश्रलिंगनिर्णय, लिङ्गानुशासन :
__ 'जैन ग्रंथावली' पृ० ३०७ में 'मिश्रलिङ्गनिर्णय' नामक एक कृति और उसके कर्ता कल्याणसूरि का उल्लेख है। 'मिश्रलिंगकोश' और 'मिश्रलिंगनिर्णय' एक ही कृति मालूम होती है। इसके कर्ता का नाम कल्याणसागर है। वे अंचलगच्छ के धर्ममूर्ति के शिष्य थे। उन्होंने अपने शिष्य विनीतसागर के लिए इस कोश की रचना की है। इसमें एक से ज्यादा लिंग के याने जाति के नामों की सूची इन्होंने दी है। उणादिप्रत्यय:
दिगंबराचार्य वसुनन्दि ने 'उणादिप्रत्यय' नामक एक कृति की रचना की है। इस पर इन्होंने स्वोपज्ञ टीका भी लिखी है। इसका उल्लेख 'जिनरत्नकोश' पृ० ४१ पर है।
१. इनमें से सं० २, ६, ७, ९ के सिवाय सब कृतियाँ और 'काग्यमनोहर'
पाटन की हेमचन्द्राचार्य सभा से प्रकाशित हैं।
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