________________
४४
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
हे शब्दसंचय :
सिद्धहेमशब्दानुशासन पर अमरचन्द्र की 'हेमशब्दसंचय' नामक ४२६ श्लोक-प्रमाण एक कृति का उल्लेख 'जिनरत्नकोश' पृ० ४६३ में किया है । हेमशब्द संचय :
सिद्ध हेमशब्दानुशासन पर १५०० श्लोक - प्रमाण ४३६ पत्रों की एक प्रति का उल्लेख 'जैन ग्रन्थावली' पृ० ३०३ पर है ।
हैमकारकसमुच्चय :
सिद्ध हेम शब्दानुशासन के कारक प्रकरण पर प्राथमिक विद्यार्थियों के लिए श्रीप्रभसूरि ने ' हैमकारकसमुच्चय' नामक कृति की रचना की है। इसके तीन अधिकार हैं । जैन ग्रन्थावली, पृ० ३०२ में इसका उल्लेख है ।
सिद्धसारस्वत - व्याकरण :
चंद्रगच्छीय देवभद्र के शिष्य आचार्य देवानन्दसूरि ने 'सिद्ध हेमशब्दानुशासन' व्याकरण में से उद्धृतकर 'सिद्धसारस्वत' नामक नवीन व्याकरण की रचना की । प्रभावकचरितान्तर्गत 'महेन्द्रसूरिचरित' में इस प्रकार उल्लेख है :
श्रीदेवानन्दसूरिर्दिशतु मुदमसौ लक्षणाद् येन हैमादुद्धृत्य प्राज्ञहेतोर्विहितमभिनवं 'सिद्धसारखताख्यम्' । शाब्द शास्त्रं यदीयान्वयिकनकगिरिस्थान कल्पद्रुमश्च श्रीमान् प्रद्युम्नसूरिर्विशदयति गिरं नः पदार्थप्रदाता ।। ३२८ ।। मुनिदेवसूरि द्वारा ( वि० सं० १३२२ में ) रचित 'शांतिनाथचरित्र' में भी इस व्याकरण का उल्लेख इस प्रकार आता है :
श्रीदेवानन्दसूरिभ्यो नमस्तेभ्यः प्रकाशितम् । सिद्धसारस्वताख्यं यैर्निजं शब्दानुशासनम् ॥ १६ ॥
इन उल्लेखों से अनुमान होता है कि यह व्याकरण वि० सं० १२७५ के करीब रचा गया होगा । इस दृष्टि से 'सिद्ध हेमशब्दानुशासन' पर यह सर्वप्रथम व्याकरण माना जा सकता है ।
उपसर्गमण्डन :
धातु या धातु से बनाये हुए 'नाम' आदि के पूर्व जुड़ा हुआ और अर्थ में प्रायः विशेषता लानेवाला अव्यय 'उपसर्ग' कहलाता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org