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व्याकरण
प्रकाशित किया है। भांडारकर इन्स्टीट्यूट, पूना में इसकी सं० १७५५ में लिखित प्रति है।
उपाध्याय मेघविजयगणि ने भिन्न-भिन्न विषयों पर अनेकों ग्रंथ लिखे हैं : १ दिगविजय महाकाव्य (काव्य) २० तपागच्छपट्टावली २ सप्तसंधान महाकाव्य , २१ पञ्चतीर्थस्तुति ३ लघु-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र , २२ शिवपुरी-शंखेश्वर पार्श्वनाथस्तोत्र ४ भविष्यदत्त कथा
२३ भक्तामरस्तोत्रटीका ५ पञ्चाख्यान
२४ शान्तिनाथचरित्र (नैषधीय ६ चित्रकोश (विज्ञप्तिपत्र) ,
समस्यापूर्ति-काव्य ) . ७ वृतमौक्तिक (छन्द) २५ देवानन्द महाकाव्य (माघ ८ मणिपरीक्षा (न्याय)
समस्यापूर्ति काव्य) ९ युक्तिप्रबोध ( शास्त्रीय आलोचना) २६ किरात-समस्या-पूर्ति १० धर्ममञ्जूषा , २७ मेघदूत-समस्या-लेख ११ वर्षप्रबोध (मेघमहोदय) (ज्योतिष) २८-२९ पाणिनीय द्वयाश्रयविज्ञप्तिलेख १२ उदयदीपिका
३० विजयदेवमाहात्म्य-विवरण १३ प्रश्नसुन्दरी
३१ विजयदेव-निर्वाणरास १४ हस्तसंजीवन (सामुद्रिक) ३२ पार्श्वनाथ-नाममाला १५ रमलशास्त्र (रमल)
३३ थावचाकुमारसज्झाय १६ वीशयंत्रविधि (यंत्र)
३४ सीमन्धरस्वामीस्तवन १७ मातृकाप्रसाद (अध्यात्म) ३५ चौवीशी (भाषा) १८ अर्हद्गीता ,
३६ दशमतस्तवन १९ ब्रह्मबोध ,
३७ कुमतिनिवारणहुंडी हैमप्रक्रिया: __ सिद्धहेमशब्दानुशासन पर महेन्द्रसुत वीरसेन ने प्रक्रिया-ग्रंथ की रचना की है। हैमप्रक्रियाशब्दसमुच्चय :
सिद्धहेमशब्दानुशासन पर १५०० श्लोक-प्रमाण एक कृति का उल्लेख 'जैन ग्रन्थावली' पृ. ३०३ में मिलता है . हेमशब्दसमुच्चय :
सिद्धहेमशब्दानुशासन पर 'हेमशब्दसमुच्चय' नामक ४९२ श्लोक-प्रमाण कृति का उल्लेख जिनरत्नकोश, पृ० ४६३ में है।
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