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________________ व्याकरण ३९ हैमधातुपारायण-वृत्तिः आचार्य हेमचन्द्रसूरि ने 'हैमधातुपारायण' पर वृत्ति की रचना की है।' हेम-लिंगानुशासन: आचार्य हेमचन्द्रसूरि ने नामों के लिंगों को बताने के लिये 'लिंगानुशासन की रचना की है। संस्कृत भाषा में नामों के लिंगों को याद रखना ही चाहिए । इसमें आठ प्रकरण इस प्रकार हैं: १. पुंलिंग, पद्य १७: २. स्त्रीलिंग ३३: ३. नपुंसकलिंग ३४, ४. पुं-स्त्रीलिंग १२; ५. पुं-नपुंसकलिंग ३६: ६. स्त्री-नपुंगकलिंग ६:७. स्वतः स्त्रीलिंग ६, ८. परलिंग ४ । इस प्रकार इसमें १३०, पद्य विविध छंदों में हैं। शाकटायन के लिंगानुशासन से यह ग्रंथ बड़ा है । शब्दों के लिंगों के लिए यह प्रमाणभूत और अंतिम माना जाता है । हेम-लिंगानुशासन-वृत्ति : __ हेमचन्द्रसूरि ने अपने 'लिंगानुशासन' पर स्वोपज्ञवृत्ति की रचना की है। यह वृत्ति-ग्रंथ ४००० श्लोक-प्रमाण है। इसमें ५७ ग्रंथों और पूर्वाचार्यों के मतों का उल्लेख किया है। दुर्गपदप्रबोध-वृत्ति पाटक वल्लभ मुनि ने हेमचन्द्रसूरि के 'लिंगानुशासन' पर वि० सं० १६६१ में २००० श्लोक-परिमाण 'दुर्गपदप्रयोध' नामक वृत्ति की रचना की है। हेम-लिंगानुशासन-अवचूरिः पं० केसरविजयजी ने आचार्य हेमचन्द्रसूरि के लिंगानुशासन पर 'अवचूरि' की रचना की है। आचार्य हेमचन्द्रसूरि की स्वोपज्ञ वृत्ति के आधार पर यह छोटी-सी वृत्ति बनाई गई है। १. इस वृत्ति ग्रंथ का मूलसहित संपादन वीएना के जे० कार्ट ने किया है और बम्बई से सन् १९०१ में प्रकाशित हुआ है। संपादक ने इस ग्रंथ में प्रयुक्त धातुओं का और शब्दों का अलग-अलग कोश दिया है । २. यह ग्रंथ 'ममी-सोम जैन ग्रंथमाला' बम्बई से वि० सं० १९९६ में प्रका___शित हुभा है। ३. यह 'भवचूरि' यशोविजय जैन ग्रंथमाला, भावनगर से प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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