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________________ व्याकरण श्लोकात्मक इस वृत्ति में दो स्थलों में 'स्वोपज्ञ' शब्द का उल्लेख होने से यह वृत्ति स्वोपज्ञ मानी जाती है ।' ३१ बृहद्वृत्ति ( तत्त्वप्रकाशिका ) : 1 'सि० श०' पर 'तत्त्वप्रकाशिका' नाम की बृहद्वृत्ति का स्वयं हेमचन्द्रसूरि ने निर्माण किया है । यह १८००० श्लोकपरिमाण है इसलिये इसको 'अठारह हजारी' भी कहते हैं । यह १ अध्याय से ८ अध्याय तक है । कई विद्वान् ८ वें अध्याय की वृत्ति को 'लघुवृत्ति' के अन्तर्गत गिनते हैं । इस विषय में ग्रन्थकार ने कोई स्पष्टीकरण नहीं किया है । इस वृत्ति में 'अमोघवृत्ति' का भी आधार लिया गया है । गणपाठ, उणादि वगैरह इसमें हैं । बृहन्न्यास ( शब्दमहार्णवन्यास ) : 'सि० श०' की बृहद्वृत्ति पर ' शब्द महार्णवन्यास' नाम से बृहन्न्यास की रचना ८४००० श्लोक-परिमाण में स्वयं हेमचन्द्रसूरि ने की है । वाद और प्रतिवाद उपस्थित करके अपने विधान को स्थिर करना, उसे यहाँ 'न्यास' कहते हैं । इसमें कई प्राचीन वैयाकरणों के मतों का उल्लेख किया गया है । पतञ्जलि का 'शेषं निःशेषकर्तारम्' इस वाक्य से बड़े आदर के साथ स्मरण किया है। दुर्भाग्यवश यह न्यास पूरा नहीं मिलता। केवल २० श्लोक -प्रमाण यह ग्रन्थ इस रूप में मिलता है : पहले अध्याय के प्रथम पाद ४२ सूत्रों में से ३८ सूत्र, तीसरा व चतुर्थ पाद; दूसरे अध्याय के चारों पाद, तीसरे अध्याय का चतुर्थ पाद और सातवें अध्याय का तीसरा पाद इन पर न्यास मिलता है । जिन अध्यायों के पादों पर न्यास नहीं मिलता उनपर आचार्य विजयलावण्यसूरि ने 'न्यासानुसंधान' नाम से न्यास की रचना की है। के न्याससारसमुद्धार ( बृहन्न्यास दुर्गपद व्याख्या ) : 'सि० श०' पर चन्द्रगच्छीय आचार्य देवेन्द्रसूरि के शिष्य कनकप्रभसूरि ने हेमचन्द्रसूरि के 'बृहन्न्यास' के संक्षिप्त रूप 'न्याससारसमुद्धार' अपर नाम 'बृहन्न्यास दुर्गपदव्याख्या' के नाम से न्यास ग्रन्थ की १३ वीं सदी में रचना की है। १. जैन श्रेयस्कर मण्डल, मेहसाना की ओर से यह ग्रन्थ छपा है । २. यह वृत्ति जैन ग्रन्थ प्रकाशक सभा, अहमदाबाद की ओर से छपी है । ३. ५ अध्याय तक लावण्यसूरि ग्रन्थमाला, बोटाद की ओर से छप चुका है। ४. यह न्यास मनसुखभाई भगुभाई, अहमदाबाद की ओर से छपा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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