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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास
स्तुति-स्तोत्र २२. वीतरागस्तोत्र २३. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका ( पद्य) २४. अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका (पद्य) २५. महादेवस्तोत्र ( पद्य)
अन्य कृतियाँ मध्यमवृत्ति ( सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन की टीका) रहस्यवृत्ति अहंन्नामसमुच्चय अहन्नीति नाभेय-नेमिद्विसंधानकाव्य न्यायबलाबलसूत्र बलाबलसूत्र-बृहवृत्ति
बालभाषाव्याकरणसूत्रवृत्ति इनमें से कुछ कृतियों के विषय में संदेह है। स्वोपज्ञ लघुवृत्ति:
'सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन' की विशद किन्तु संक्षेप में स्पष्टीकरण करनेवाली यह टीका स्वयं हेमचन्द्रसूरि ने रची है, जिसको 'लघुवृत्ति' कहते हैं । अध्याय १ से ७ तक की इस वृत्ति का श्लोक-परिमाण ६००० है, इसलिये उसको 'छः हजारी' भी कहते हैं। ८ वें अध्याय पर लघुवृत्ति नहीं है। इसमें गणपाठ, उणादि आदि नहीं हैं। खोपज्ञ मध्यमवृत्ति (लघुवृत्ति-अवचूरिपरिष्कार): ___ अध्याय प्रथम से अध्याय सप्तम तक ८००० श्लोक-परिमाण 'मध्यमवृत्ति' की स्वयं हेमचन्द्रसूरि ने रचना की है ऐसा कुछ विद्वानों का मन्तव्य है। रहस्यवृत्ति
'सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन' पर 'रहस्यवृत्ति' भी स्वयं हेमचन्द्रसूरि ने रची है, ऐसा माना जाता है। इसमें सब सूत्र नहीं हैं। प्रायः २५००
1. 'श्री लब्धिसूरीश्वर जैन ग्रन्थमाला' छाणी की भोर से इसकी चतुष्कवृत्ति
(पृ० १-२४८ तक ) प्रकाशित हुई है।
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