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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास
१. लघुन्यासः
'सि. श०' पर हेमचन्द्रसूरि के शिष्य आचार्य रामचन्द्रसूरि ने ५३००० श्लोक-परिमाण 'लघुन्यास' की आचार्य हेमचन्द्रसूरि के समय (वि० १३ वीं शती) में रचना की है। २. लघुन्यासः
'सि० श.' पर धर्मघोषसूरि ने ९००० श्लोक-प्रमाण 'लघुन्यास' की लगभग १४ वीं शताब्दी में रचना की है। न्याससारोद्वार-टिप्पण
सि० श.' पर किसी अज्ञात आचार्य ने 'न्याससारोद्धार-टिप्पण' नाम से एक रचना की है, जिसकी वि० सं० १२७९ की हस्तलिखित प्रति मिलती है। हैमढुण्ढिका:
'सि० श०' पर उदयसौभाग्य ने २३०० श्लोकात्मक 'हैमढुंढिका' नाम से व्याख्या की रचना की है। अष्टाध्यायतृतीयपद-वृत्ति
'सि० श०' पर आचार्य विनयसागरसूरि ने 'अष्टाध्यायतृतीयपद वृत्ति' नाम से एक रचना की है। हैमलघुवृत्तिःअवचूरिः
'सि० श०' की 'लघुवृत्ति' पर अवचूरि हो ऐसा मालूम होता है। देवेन्द्र के शिष्य धनचन्द्र द्वारा २२१३ श्लोकात्मक हस्तलिखित प्रति वि० सं० १४०३ में लिखी हुई मिलती है। चतुष्कवृत्ति-अवचूरि
'सि० श०' की चतुष्कवृत्ति पर किसी विद्वान् ने अवचूरि की रचना की है, जिसका उल्लेख 'जैन ग्रंथावली' के पृ० ३०० पर है । लघुवृत्ति-अवचूरि
'सि० श०' की लघुवृत्ति के चार अध्यायों पर नन्दसुन्दर मुनि ने वि० सं० १५१० में अवचूरि की रचना की है, जिसकी हस्तलिखित प्रति मिलती है ।
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