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________________ व्याकरण इसकी रचना अनेक व्याकरण-ग्रंथों के आधार पर की गई है । धातुपाठ, सूत्रपाट, गणपाठ, उणादिसूत्र पद्मबद्ध हैं।' दीपकव्याकरण: श्वेतांबर जैनाचार्य भद्रेश्वरसूरिरचित 'दीपकव्याकरण' का उल्लेख 'गणरत्नमहोदधि' में वर्धमानसूरि ने इस प्रकार किया है---'मेधाविनः प्रवरदीपक कतयुक्ता ।' उसकी व्याख्या में वे लिखते हैं : ' 'दीपककर्ता भद्रेश्वरसूरिः। प्रवरश्चासौ दीपककर्ता च प्रवरदीपककर्ता । प्राधान्यं चास्याधुनिकवैयाकरणापेक्षया ।' दूसरा उल्लेख इस प्रकार है : 'भद्रेश्वराचार्यस्तु'-- 'किञ्च स्वा दुर्मगा कान्ता रक्षान्ता निश्चिता सम।। सचिवा चपला भक्तिर्बाल्येति स्वादयो दश । इति स्वादौ वेत्यनेन विकल्पेन पुंवद्भावं मन्यन्ते ।' इस उल्लेख से ज्ञात होता है कि उन्होंने 'लिङ्गानुशासन' की भी रचना की थी। सायणरचित 'धातुवृत्ति' में श्रीभद्र के नाम से व्याकरण विषयक मत के अनेक उल्लेख हैं, संभवतः वे भद्रेश्वरसूरि के 'दीपकव्याकरण' के होंगे। श्रीभद्र (भद्रेश्वरसूरि) ने अपने 'धातुपाठ' पर वृति ने रचना भी की है ऐसा सायण के उल्लेख से मालूम पड़ता है । ___'कहावली' के कर्ता भद्रेश्वरसूरि ने यदि 'दीपकव्याकरण' की रचना की हो तो वे १३ वीं शताब्दी में हुए थे ऐसा निर्णय कर सकते हैं और दूसरे भद्रेश्वरसूरि जो बालचन्द्रसूरि की गुरुपरंपरा में हुए वे १२ वीं शताब्दी में हुए थे। शब्दानुशासन (मुष्टिव्याकरण): आचार्य मलयगिरिसूरि ने संख्याबद्ध आगम, प्रकरण और ग्रन्थों पर व्याख्याओं की रचना करके आगमिक और दार्शनिक सैद्धान्तिक तौर पर ख्याति प्राप्त की है परन्तु उनका यदि कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ हो तो वह सिर्फ स्वोपज्ञ वृत्ति १. श्री बुद्धिसागराचार्यैः पाणिनि-चन्द्र-जैनेन्द्र-विश्रान्त-दुर्गटीकामवलोक्य वृत्तबन्धैः (१)। धातुसूत्र-गणोणादिवृत्तबन्धैः कृतं व्याकरणं संस्कृतशम्दप्राकृतशब्दसिद्धये ॥-प्रमालक्ष्मप्रांते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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