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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पश्चग्रन्थी या बुद्धिसागर-व्याकरण : 'पञ्चग्रन्थी-व्याकरण' का दूसरा नाम है 'बुद्धिसागर व्याकरण' और 'शब्दलम' । इस व्याकरण की रचना श्वेतांबराचार्य बुद्धिसागरसूरि ने वि० सं० १०८० में की है ।' ये आचार्य वर्धमानसूरि के शिष्य थे । ग्रन्थकार ने इस ग्रन्थ की रचना करने का कारण बताते हुए कहा है कि 'जब ब्राह्मणों ने आक्षेप करते हुए कहा कि जैनों में शब्दलक्ष्म और प्रमालक्ष्म है ही कहाँ ? वे तो परग्रंथोपजीवी हैं । तब बुद्धिसागरसूरि ने इस आक्षेप का जबाव देने के लिये ही इस ग्रंथ की रचना की। ___ श्वेतांबर आचार्यों में उपलब्ध सर्वप्रथम व्याकरणग्रन्थ की रचना करनेवाले यही आचार्य हैं। इन्होंने गद्य और पद्यमय ७००० श्लोक-प्रमाण इस ग्रंथ की रचना की है। इस व्याकरण का उल्लेख सं० १०९५ में धनेश्वरसूरिरचित सुरसुन्दरीकथा की प्रशस्ति में आता है। इसके सिवाय सं० ११२० में अभयदेवसूरिकृत पञ्चाशकवृत्ति (प्रशस्ति श्लो० ३) में, सं० ११३९ में गुणचन्द्ररचित महावीरचरित ( प्राकृत-प्रस्ताव ८, श्लो० ५३) में, जिनदत्तसूरिरचित गणधरसार्धशतक (पद्य ६९) में, पद्मप्रभकृत कुन्थुनाथचरित और प्रभावकचरित ( अभयदेवसूरिचरित) में भी इस ग्रंथ का नामोल्लेख आता है। १. श्रीविक्रमादित्यनरेन्द्रकालात् साशीतिके याति समासहस्र । सश्रीकजावालिपुरे तदाद्यं दृब्धं मया सप्तसहस्रकल्पम् ॥ -व्याकरणप्रान्तप्रशस्तिः । २. तैरवधीरिते यत् तु प्रवृत्तिरावयोरिह । तत्र दुर्जनवाक्यानि प्रवृत्तेः सन्निबन्धनम् ॥ ४०३ ॥ शब्दलक्ष्म-प्रमालक्ष्म यदेतेषां न विद्यते । नादिमन्तस्ततो ह्य ते परलक्ष्मोपजीविनः ॥ ४०४ ॥ -प्रमालक्ष्मप्रांते । ३. इस व्याकरण की हस्तलिखित प्रति जैसलमेर-भंडार में है। प्रति अत्यन्त अशुद्ध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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