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________________ ग्याकरण वृत्ति में 'मदहदमोघवर्षोऽरातोन्' ऐसा उदाहरण है, जो अमोघवर्ष राजा का ही निर्देश करता है। अमोघवर्ष का राज्यकाल शक सं० ७३६ से ७८९ है, इसी के मध्य इसकी रचना हुई है। चिन्तामणि-शाकटायनव्याकरण-वृत्ति : ____ यक्षवर्मा नामक विद्वान् ने 'अमोघवृत्ति' के आधार पर ६००० श्लोकपरिमाण की एक छोटी-सी वृत्ति की रचना की है। वे साधु थे या गृहस्थ और वे कब हुए इस सम्बन्ध में तथा उनके अन्य ग्रन्थों के विषय में भी कुछ जानने को नहीं मिलता। उन्होंने अपनी वृत्ति के विषय में कहा है : 'तस्यातिमहती वृत्तिं संहृत्येयं लघीयसी। संपूर्णलक्षणा वृत्तिर्वक्ष्यते यक्षवर्मणा ॥ बालाऽबलाजनोऽप्यस्या वृत्तेरभ्यासवृत्तितः। समस्तं वाङ्मयं वेत्ति वर्षेणैकेन निश्चयात् ।।' अर्थात् अमोघवृत्ति नामक बड़ी वृत्ति में से संक्षेप करके यह छोटी-सी परन्तु संपूर्ण लक्षणों से युक्त वृत्ति यशवर्मा कहता है। बालक और स्त्री-जन भी इस वृत्ति के अभ्यास से एक वर्ष में निश्चय ही समस्त वाङ्मय के जानकार बनते हैं। यह वृत्ति कैसी है इसका अनुमान इससे हो जाता है। समन्तभद्र ने इस टीका के विषम पदों पर टिप्पण लिखा है, जिसका उल्लेख 'माधवीय-धातुवृत्ति' में आता है। मणिप्रकाशिका (शाकटायनव्याकरणवृत्ति-चिन्तामणि-टीका ) : __ 'मणि' याने चिन्तामणिटीका, जो यक्षवर्मा ने रची है, उस पर अजितसेनाचार्य ने वृत्ति की रचना की है। अजितसेन नाम के बहुत से विद्वान् हो गये हैं। यह रचना कौन-से अजितसेन ने किस समय में की है इस सम्बन्ध में कुछ भी ज्ञातव्य प्राप्त नहीं हुआ है । प्रक्रियासंग्रह : . पाणिनीय व्याकरण को 'सिद्धान्तकौमुदी' के रचयिता ने जिस प्रकार प्रक्रिया में रखने का प्रयत्न किया उसी प्रकार अभयचन्द्र नामक आचार्य ने 'शाकटायन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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