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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास अमोघवृत्ति ( शाकटायनव्याकरण-वृत्ति):
__ 'शाकटायनव्याकरण' पर लगभग अठारह हजार श्लोक-परिमाण की 'अमोघवृत्ति' नाम से रचना उपलब्ध है। यह वृत्ति सब टोका-ग्रन्थों में प्राचीन और विस्तारयुक्त है। राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष को लक्ष्य करके इसका 'अमोघवृत्ति' नाम रखा गया प्रतीत होता है। रचना-समय वि० ९ वीं शती है।
वर्धमानसूरि ने अपने 'गणरत्नमहोदधि' (पृ० ८२, ९० ) में शाकटायन के नाम से जो उल्लेख किये हैं वे सब 'अमोघवृत्ति' में मिलते हैं।
आचार्य मलयगिरि ने 'नंदिसूत्र' की टीका में 'वीरममृतं ज्योतिः' इस मङ्गलाचरण-पद्य को शाकटायन की स्वोपज्ञवृत्ति का बताया है, जो 'अमोघवृत्ति' में मिलता है।
यक्षवर्मा ने शाकटायनव्याकरण की 'चिन्तामणि-टीका' के मंगलाचरण में शाकटायन-पाल्यकीर्ति के विषय में आदर व्यक्त करते हुए 'अमोघवृत्ति' के 'तस्यातिमहतीं वृत्तिम्' इस उल्लेख से स्वोपज्ञ होने की सूचना दी है यह प्रतीत होता है। सर्वानन्द ने 'अमरटीकासर्वस्व' में अमोघवृत्ति से पाल्यकीर्ति के नाम के साथ उद्धरण दिया है।
इन उल्लेखों से स्पष्ट है कि 'अमोघवृत्ति' के कर्ता शाकटायनाचार्य पाल्यकीर्ति स्वयं हैं।
यक्षवर्मा ने इस वृत्ति की विशेषता बताते हुए कहा है : 'गण-धातुपाठयोगेन धातून् लिङ्गानुशासने लिङ्गगतम् ।
औणादिकानुणादौ शेषं निःशेषमत्र वृत्तौ विद्यात् ॥ ११ ॥
अर्थात् गणपाठ, धातुपाठ, लिङ्गानुशासन और उणादि के सिवाय इस वृत्ति में सब विषय वर्णित हैं।
इससे इस वृत्ति की कितनी उपयोगिता है, इसका अनुमान हो सकता है। यह वृत्ति अभी तक अप्रकाशित है।
इस व्याकरण-ग्रन्थ में गणपाठ, धातुपाठ, लिंगानुशासन, उणादि वगैरह निःशेष प्रकरण हैं। इस नि:शेष विशेषण द्वारा सम्भवतः अनेकशेष जैनेन्द्रव्याकरण की अपूर्णता की ओर संकेत किया हो ऐसा लगता है ।
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