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ग्याकरण
अर्थात् शाकटायनव्याकरण में इष्टिया' पढ़ने की जरूरत नहीं। सूत्रों से अलग वक्तव्य कुछ नहीं है। उपसंख्यानों की भी जरूरत नहीं है। इन्द्र, चन्द्र आदि वैयाकरणों ने जो शब्द-लक्षण कहा वह सब इस व्याकरण में आ जाता है और जो यहाँ नहीं है वह कहीं भी नहीं मिलेगा। ___ इस वक्तव्य में अतिशयोक्ति होने पर भी पाल्यकीर्ति ने इस व्याकरण में अपने पूर्व के वैयाकरणों की कमियाँ सुधारने का प्रयत्न किया है और लौकिक पदों का अन्वाख्यान दिया है। व्याकरण के उदाहरणों से रचनाकालीन समय का ध्यान आता है। इस व्याकरण में आर्य वज्र, इन्द्र और सिद्धनंदि जैसे पूर्वाचार्यों का उल्लेख है। प्रथम नाम से तो प्रसिद्ध आर्य वज्र स्वामी अभिप्रेत होंगे और बाद के दो नामों से यापनीय संघ के आचार्य ।
इस व्याकरण पर बहुत-सी वृत्तियों की रचना हुई है।
राजशेखर ने 'काव्यमीमांसा' में पाल्यकीर्ति शाकटायन के साहित्य-विषयक मत का उल्लेख किया है, इससे उनका साहित्य-विषयक कोई ग्रन्थ रहा होगा ऐसा लगता है परन्तु वह ग्रन्थ कौन-सा था यह अभी तक ज्ञात नहीं हुआ है। पाल्यकीर्ति के अन्य ग्रन्थ :
१. स्त्रीमुक्ति प्रकरण, २. केवलिभुक्ति प्रकरण ।
यापनीय संघ स्त्रीमुक्ति और केवलिभुक्ति के विषय में श्वेताम्बर सम्प्रदाय की मान्यता का अनुसरण करता है, और विषयों में दिगंबरों के साथ मिलता-जुलता है यह इन प्रकरणों से जाना जाता है।'
१. सूत्र और वार्तिक से जो सिद्ध न हो परंतु भाष्यकार के प्रयोगों से सिद्ध
हो उसको 'इष्टि' कहते हैं। २. सूत्र १. २. १३, १. २. ३७ और २. १. २२९, ३. यथा तथा वाऽस्तु वस्तुनो रूपं वक्तृप्रकृतिविशेषायत्ता तु रसवत्ता । तथा
च यमर्थ रक्तः स्तौति त विरक्को विनिन्दति मध्यस्थस्तु तत्रोदास्ते इति
पाल्यकीर्तिः। ४. जेन साहित्य संशोधक भा० २ अंक ३-४ में ये प्रकरण प्रकाशित हुए हैं।
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