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________________ ( ४ ) रह जाएगी । हम अपने लिये भी अपने बुजुर्गों का गौरव अनुभव कर सकेंगे । वह दिन खुशी का होगा । इस ग्रन्थ में लेखक ने २७ लाक्षणिक विषयों के साहित्य का वृत्तांत प्रस्तुत किया है । पूर्वजों के युग-युगादि में ये सब विषय प्रचलित थे । उन लोगों के अध्ययन के भी विषय थे । उन समयों में शिक्षा-दीक्षा के ये भी साधन थे । काल-परिवर्तन में पुराने माध्यम और ढंग बिलकुल बदल गए हैं, यद्यपि विषय लुप्त नहीं हो गए हैं। वे तो विद्याएँ थीं । अब भी नए जमाने में नए नामों से वे विषय समझे जाते हैं । पुराने नामों और तौर-तरीके से उनका साधारण परिचय कराना भी असम्भव-सा है । वर्तमान सदा बलवान् है । उसके साथ चलना श्रेष्ठ है । उसके विपरीत चलने का प्रयत्न करना हैय है । इस, वर्तमान युग में सारे संसार में इतिहास का मान किसी अन्य विषय से कम नहीं है । इसकी जरूरत सब विद्वज्जगत् और उसके अधिकारी मानते हैं । पुराने निशानों और श्रृंखलाओं की तलाश चारों दिशाओं में हो रही हैं। सभी को इतिहास जानने की कामना निरन्तर बनी है | इस इतिहास में पाठक गणित आदि विषयों के सम्बन्ध में संक्षिप्त परिचय से ही चकित होंगे कि महानुभावों के ज्ञान और अनुभव में बड़े गहरे प्रश्न आ चुके थे । इस ग्रन्थ के विद्वान् लेखक पंडित अंबालाल प्रे० शाह अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर में कार्य करते हैं । सम्पादन पं० श्री दलसुखभाई मालवणिया और डा० मोहनलाल मेहता ने किया है। पं० श्री मालवणिया कई वर्षों तक बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में जैन दर्शन पढ़ाते रहे हैं। हाल में ही आप कैनेडा में टोरन्टो यूनिवर्सिटी में १६ मास तक कार्य करके लौटे हैं । डा० मेहता पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी के अध्यक्ष और बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में जैन- अध्ययन के सम्मान्य प्राध्यापक हैं । इनकी रचना 'जैन साहित्य का बृहद् इतिहास' के तीसरे भाग के लिये इन्हें उत्तरप्रदेश सरकार से १५००) रुपये का रवींद्र पुरस्कार मिला है। इससे पहले भी ये राजस्थान सरकार से पुरस्कृत हुए थे। तब 'जैन दर्शन' ग्रन्थ पर १०००) रुपये और स्वर्ण पदक इन्हें मिला था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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