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________________ प्रकाशकीय .. जैन साहित्य-निर्माण योजना के अन्तर्गत जैन साहित्य के बृहद् इतिहास का यह पांचवां भाग है। जैनों द्वारा प्राचीन काल से लिखा गया लाक्षणिक ( Technical ) साहित्य इसका विषय है । इसे प्रस्तुत करते हमें बड़ी खुशी और संतोष हो रहा है । सदैव से जैन विचारक और विद्वान् इस क्षेत्र में भी भारतीय दाय को समृद्ध करते आए हैं। वे अपने लेख अपने-अपने समय में प्रसिद्ध और बोली जानेवाली भाषाओं में सर्वहितार्थ लिखते रहे हैं। यह सब ज्ञातव्य था । साधारण जैन जिनमें अक्सर साधुवर्ग भी शामिल है, इस ऐतिहासिक परिचय से अपरिचित-सा है। जब हम जानते ही नहीं कि पूर्व या भूत काल में हमारी जड़ें हैं और वर्तमान में हम तब से चले आ रहे हैं तो हमारा मन किस सिद्धि पर आश्चर्य अनुभव करे । गर्व का कारण ही कैसे प्रेरित हो। यह पांचवां भाग उपर्युक्त आन्तरिक आन्दोलन का उत्तर है। हम यह नहीं कहते कि लाक्षणिक विद्याओं ( Technical Sciences ) के सम्बन्ध में यह परिश्रम जैन योगदान की पूरी कथा प्रस्तुत करता है । यह तो पहली ही कोशिश है जो आज तक किसी दिशा से हुई थी। तो भी लेखक ने बड़ी रुचि, मेहनत और अध्ययन से इस ग्रन्थ को रचा है । इसके लिये हम उन्हें बधाई देते हैं। ग्रन्थ में जगह-जगह पर लेखक ने निर्देश किया है कि अमुक-प्रन्थ, मिलता नहीं है या प्रकाशित नहीं हुआ है, इत्यादि। अब अन्य जैन विद्वानों और शोध या खोज-कर्ताओं पर यह उत्तरदायित्व है कि वे अनुपलब्ध या अप्रकाशित सामग्री को प्रकाश में लाएं। साधारण जैन भी समझे कि उसके धन के उपयोग के लिये एक बेहतर या बेहतरीन क्षेत्र उपस्थित हो गया है। इसी प्रकार के निर्देश या संकेत इस इतिहास के पूर्व के चार भागों में भी कई स्थलों पर उनके लेखकों ने प्रकट किये हैं। जब समाज अपने उपलब्ध साधनों को इस ओर प्रेरित करेगा तो सम्पूर्णता-प्राप्ति कठिन न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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