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________________ हम उपर्युक्त सब सजनों के आभारी हैं । उनकी सहायता हमें सदैव प्राप्त होती रहती है। इस ग्रन्थ के प्रकाशन का खर्च स्व० श्रीमती लाभदेवी हरजसराय जैन की वसीयत के निष्पादक (Executor) श्री अमरचंद्र जैन, राजहंस प्रेस, दिल्ली ने वहन किया है। स्व० महिला का निधन १९६० में मई १९ को ठीक विवाह-तिथि वाले दिन हो गया था। वे साधारणतया किसी पाठशाला या स्कूल से शिक्षित नहीं थीं । उनके कथनानुसार उनकी माता की भरसक कामना रही कि वे अपनी सन्तान में किसी को पुस्तकें बगल में दबाए स्कूल जाते देखें परन्तु ऐसा हुआ नहीं। स्वर्गीया ने हिन्दी अक्षरज्ञान बाद में संचित किया, इच्छा उर्दू और अंग्रेजी पढ़ने की भी रही पर लिखने का अभ्यास उनके लिये अशक्य था। नहीं किया तो वह ज्ञान भी नहीं हुआ। प्रतिदिन सामायिक के समय वे अपने ढंग और रुचि की धर्म-पुस्तकें और भजन आदि पढ़ती रहीं। चिन्तन करते-करते उन्हें यह प्रश्न प्रत्यक्ष हुआ कि क्या स्थानकवासी जैन ही मुक्ति पाएंगे ? फिर कभी यह जानने की उत्कण्ठा हुई कि 'हम' में और 'दिगम्बर-विचार' में भेद क्या है ? उन्हें समझाया जाए। स्वयं वे दृढ़ साधुमार्गी स्थानकवासी जैन-श्रद्धा की थीं। धर्मार्थ काम के लिये उन्होंने वसीयत में प्रबन्ध किया था। उनके परिवार ने उस राशि का विस्तार कर दिया था। प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकाशन का खर्च श्रीमती लाभदेवी धर्मार्थ खाते से हुआ है । इस सहायता के लिये प्रकाशक अनेकशः धन्यवाद प्रकट करते हैं। रूपमहल हरजसराय जैन फरीदाबाद मन्त्री, ३१.१२. ६९ श्री सोहनलाल जैनधर्म प्रचारक समिति अमृतसर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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