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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
जैनेन्द्र-व्याकरण ( पचाध्यायी ) :
इस व्याकरण के कर्ता देवनन्दि दिगंबर सम्प्रदाय के आचार्य थे। उनके पूज्यपाद' और जिनेन्द्रबुद्धि' ऐसे दो और नाम भी प्रचलित थे । 'देव' इस प्रकार संक्षिप्त नाम से भी लोग उन्हें पहिचानते थे । उन्होंने बहुत से ग्रन्थों की रचना की है । लक्षणशास्त्र में देवनंदि उत्तम ग्रंथकार माने गये हैं । इनका समय विक्रम की छठी शताब्दी है ।
बोपदेव ने जिन आठ प्राचीन वैयाकरणों का उल्लेख किया है उनमें जैनेन्द्र भी एक हैं । ये देवनन्दि या पूज्यपाद विक्रम की छठी शताब्दी में विद्यमान थे ऐसा विद्वानों का मंतव्य है । जहाँ तक मालूम हुआ है, जैनाचार्य द्वारा रचे गये मौलिक व्याकरणों में 'जैनेन्द्र-व्याकरण' सर्वप्रथम है ।
9. यशः कीर्त्तिर्यशोनन्दी देवनन्दी महामतिः ।
श्रीपूज्यपादापराख्यो गुणनन्दी गुणाकरः ॥ - -नन्दी संघपट्टावली ।
२ एक जिनेन्द्रबुद्धि नाम के बोधिसत्त्वदेशीयाचार्य या बौद्ध साधु विक्रम की रवीं शताब्दी में हुए थे, जिन्होंने 'पाणिनीय व्याकरण' की 'काशिकावृत्ति' पर एक न्यासग्रन्थ की रचना की थी, जो 'जिनेन्द्रबुद्धि-न्यास' के नाम से प्रसिद्ध है । लेकिन ये जिनेन्द्रबुद्धि उनसे भिन्न हैं । यह तो पूज्यपाद का नामान्तर है, जिनके विषय में इस प्रकार उल्लेख मिलता है : 'जिनवद् बभूव यदनङ्गचापहृत् स जिनेन्द्रबुद्धिरिति साधु वर्णितः ।' -श्रवणबेलगोल के सं० १०८ ( २८५ ) का मंगराजकवि ( सं० १५०० ) कृत शिलालेख, इलोक १६.
३. 'प्रमाणमकलङ्कस्य पूज्यपादस्य लक्षणम्' । धनञ्जयनाममाला, श्लोक २०. 'सर्वव्याकरणे विपश्चिदधिपः श्रीपूज्यपादः स्वयम् |'; 'शब्दाश्च येन ( पूज्यपादेन ) सिद्ध्यन्ति ।'- - ये सब प्रमाण उनके महावैयाकरण होने के परिचायक हैं ।
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४. नाथूराम प्रेमी : 'जैन साहित्य और इतिहास' पृ० ११५ - ११७,
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