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व्याकरण
थे। इसलिये 'शब्दप्राभृत' भी संस्कृत में रहा होगा ऐसी सम्भावना हो सकती है। क्षपणक-व्याकरण :
व्याकरणविषयक कई ग्रन्थों में ऐसे उद्धरण मिलते हैं, जिससे ज्ञात होता है कि किसी क्षपणक नाम के वैयाकरण ने किसी शब्दानुशासन की रचना की है। 'तन्त्रप्रदीप' में क्षपणक के मत का एकाधिक बार उल्लेख आता है। ___ कवि कालिदासरचित 'ज्योतिर्विदाभरण' नामक ग्रन्थ में विक्रमादित्य राजा की सभा के नव रत्नों के नाम उल्लिखित हैं, उनमें क्षपणक भी . एक थे।
कई ऐतिहासिक विद्वानों के मंतव्य से जैनाचार्य सिद्धसेन दिवाकर का ही दूसरा नाम क्षपणक था।
दिगम्बर जैनाचार्य देवनन्दि ने सिद्धसेन के व्याकरणविषयक मत का 'वेत्तेः सिद्धसेनस्य ॥ ५. १. ७ ॥' इस सूत्र से उल्लेख किया है।
उज्ज्वलदत्त-विरचित 'उणादिवृत्ति' में 'क्षपणकवृत्तौ अत्र 'इति' शब्द माद्यर्थे व्याख्यातः ॥'इस प्रकार उल्लेख किया है, इससे मालूम पड़ता है कि क्षपणक ने वृत्ति, धातुपाठ, उणादिसूत्र आदि के साथ व्याकरण-ग्रन्थ की रचना की होगी।
मैत्रेयरक्षित ने 'तन्त्रप्रदीप' (४. १. १५५) सूत्र में 'क्षपणक-महान्यास' उद्धृत किया है। इससे प्रतीत होता है कि क्षपणक-रचित व्याकरण पर 'न्यास' की रचना भी हुई होगी।
यह क्षपणकरचित शब्दानुशासन, उसकी वृत्ति, न्यास या उसका कोई अंश आजतक प्राप्त नहीं हुआ
१. मैत्रेयरक्षित ने अपने 'तंत्रप्रदीप' में-अतएव नावमात्मानं मन्यते इति
विग्रहपरत्वादनेन द्वस्वस्वं बाधित्वा समागमे सति 'नावं मन्ये' इति क्षपणकव्याकरणे दर्शितम् ।' ऐसा उल्लेख किया है-भारत कौमुदी, भा॰ २,
पृ० ८९३ की टिप्पणी । २. क्षपणकोऽमरसिंहशकू वेतालभट्ट-घटकपर-कालिदासाः ।
ख्यातो वराहमिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नव विक्रमस्य ॥
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