________________
व्याकरण
भगवान् महावीर के पूर्व किसी जैनाचार्य ने व्याकरण की रचना की हो ऐसा नहीं लगता। 'ऐन्द्रव्याकरण' महावीर के समय (ई० पूर्व ५९०) में बना। 'सद्दपाहुड' महावीर के पिछले काल (ई० पूर्व ५५७) में बना । लेकिन इन दोनों व्याकरणों में से एक भी उपलब्ध नहीं है। उसके बाद दिगंबर जैनाचार्य देवनन्दि ने 'जैनेन्द्रव्याकरण' की रचना विक्रम की छठी शताब्दी में की जिसे उपलब्ध जैन व्याकरण-ग्रन्थों में सर्वप्रथम रचना कह सकते हैं। इसी तरह यापनीय संघ के आचार्य शाकटायन ने लगभग वि० सं० ९०० में 'शब्दानुशासन' की रचना की, यह यापनीय संघ का आद्य और जैनो का उपलब्ध दूसरा व्याकरण है। आचार्य बुद्धिसागर सूरि ने 'पञ्चग्रन्थी' व्याकरण वि० सं० १०८० में रचा है, जिले श्वेतांबर जैनों के उपलब्ध व्याकरण-ग्रन्थों में सर्वप्रथम रचना कह सकते हैं। उसके बाद हेमचन्द्र सूरि ने 'सिद्ध-हेमचन्द्र-शब्दानुशासन' की रचना पंचांगों से युक्त को है, इसके बाद जिनका ब्यौरेवार वर्णन हम यहां कर रहे हैं, ऐसे और भी अनेक वैयाकरण हुए हैं जिन्होंने स्वतंत्र व्याकरणों की या टीका, टिप्पण तथा आंशिक रूप से व्याकरण-ग्रन्थों की रचनाएँ की हैं। ऐन्द्र-व्याकरण :
प्राचीन काल में इन्द्र नामक आचार्य का बनाया हुआ एक व्याकरण-ग्रन्थ था परन्तु वह विनष्ट हो गया है। ऐन्द्र-व्याकरण के लिये जैन ग्रन्थों में ऐसी परम्परा एवं मान्यता है कि भगवान् महावीर ने इन्द्र के लिये एक शब्दानुशासन कहा, उसे उपाध्याय (लेखाचार्य) ने सुनकर लोक में ऐन्द्र नाम से प्रगट किया ।
ऐसा मानना अतिरेकपूर्ण कहा जायगा कि भगवान् महावीर ने ऐसे किसी व्याकरण की रचना की हो और वह भी मागधी या प्राकृत में न होकर ब्राह्मणों की प्रमुख भाषा संस्कृत में ही हो ।
१. डॉ० ए० सी० बर्नेल ने ऐन्द्रव्याकरण-सम्बन्धी चीनी, तिब्बतीय और
भारतीय साहित्य के उल्लेखों का संग्रह करके 'मॉन दी ऐन्द्र स्कूल माफ
ग्रामेरियन्स' नामक एक बड़ा ग्रन्थ लिखा है। २. 'तेन प्रणष्टमैन्द्रं तदसाद् भुवि व्याकरणम्'-कथासरित्सागर, तरंग ४. ३. सको म तस्समक्खं भगवंतं मासणे निवेसित्ता।
सहस्स लक्खां पुच्छे वागरणं अवयवा इंदं ॥-भावश्यकनियुक्ति और हारिभद्रीय 'मावश्यावृत्ति' भा०१, पृ० १०२.
.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org