SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 283
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेईसवां प्रकरण शिल्पशास्त्र वास्तुसार श्रीमालवंशीय ठक्कुर फेरू ने वि० सं० १३७२ में 'वास्तुसार' नामक वास्तुशिल्प-शास्त्रविषयक ग्रंथ की प्राकृत भाषा में रचना की। वे कलश श्रेष्ठी के पौत्र और चंद्र श्रावक के पुत्र थे। उनकी माता का नाम चंद्रा था। वे धंधकुल में हुए थे और कन्नाणपुर में रहते थे। दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन के वे खजांची थे। इस ग्रंथ के गृहवास्तुप्रकरण में भूमिपरीक्षा, भूमिसाधना, भूमिलक्षण, मासफल, नीवनिवेशलग्न, गृहप्रवेशलग्न और सूर्यादिग्रहाष्टक का १५८ गाथाओं में वर्णन है। ५४ गाथाओं में बिम्बपरीक्षाप्रकरण और ६८ गाथाओं में प्रासादप्रकरण है । इस तरह इसमें कुल २८० गाथाएं हैं। शिल्पशास्त्रः दिगंबर जैन भट्टारक एकसंधि ने 'शिल्पशास्त्र' नामक कृति की रचना की है, ऐसा जिनरत्नकोश, पृ० ३८३ में उल्लेख है। १. यह ग्रन्थ 'रत्नपरीक्षादि-सप्तग्रन्थसंग्रह' में प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy