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________________ चौबीसवां प्रकरण रत्नशास्त्र प्राचीन भारत में रत्नशास्त्र एक विज्ञान माना जाता था । उसमें बहुत-सी बातें अनुश्रुतियों पर आधारित होती थीं। बाद के काल में रत्नशास्त्र के लेखकों ने अपने अनुभवों का संकलन करके उसे विशद बनाने का प्रयत्न किया है । जैन आगमों में 'प्रज्ञापनासूत्र' ( पत्र ७७, ७८ ) में वदूर, जंग अंजण ), पवाल, गोमेज, रुचक, अंक, फलिह, लोहियक्ख, मरकय, मसारगल्ल, भूयमोयग, इन्द्रनील, हंसगम, पुलक, सौगंधिक, चंद्रग्रह, वैडूर्य, जलकांत, सूर्यकांत आदि रत्नों के नाम आते हैं । कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' के कोशप्रवेश्यप्रकरण (२-१०-२९) में रत्नों का वर्णन आता है। छठी शताब्दी के बाद होनेवाले अगस्ति ने रत्नों के बारे में अपना मत 'अगस्तीय- रत्नपरीक्षा' नाम से प्रकट किया है । ७ वी ८ वीं शती के बुद्धभट्ट ने 'रत्नपरीक्षा' ग्रन्थ की रचना की है । 'गरुडपुराण' के ६८ से ७० अध्यायों में रत्नों का वर्णन है । 'मानसोल्लास' के भा० १ में कोशाध्याय में रत्नों का वर्णन मिलता है । 'रत्नसंग्रह', 'नवरत्नपरीक्षा' आदि कई ग्रंथ रत्नों का वर्णन करते हैं । संग्रामसिंह सोनी द्वारा रचित 'बुद्धिसागर' नामक ग्रन्थ में रत्नों की परीक्षा आदि विषय वर्णित हैं । यहां जैन लेखकों द्वारा रचे हुए रत्नशास्त्रविषयक ग्रन्थों के विषय में परिचय दिया जा रहा है । १. रत्नपरीक्षा : श्रीमालवंशीय ठक्कुर फेरू ने वि० सं० १३७२ में 'रत्नपरीक्षा' नामक ग्रंथ की रचना की है । रत्नों के विषय में सुरमिति, अगस्त्य और बुद्धभट्ट ने जो ग्रंथ लिखे हैं उनको सामने रखकर फेरू ने अपने पुत्र हेमपाल के लिये १३२ गाथाओं में यह ग्रंथ प्राकृत में रचा है । इस ग्रंथरचना में प्राचीन ग्रन्थों का आधार लेने पर भी ग्रन्थकार ने चौदहवीं शताब्दी के रत्न-व्यवसाय पर काफी प्रकाश डाला है । रत्नों के संबंध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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