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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास गाणुसारेण णेयमिति' ऐसा उल्लेख किया है। इससे स्पष्ट होता है कि प्राचीन काल में 'धूर्ताख्यान' नामक प्राकृत भाषा में रचित व्यंसक-कथा थी।
उसी कथा का आधार लेकर आचार्य हरिभद्रसूरि ने 'धूर्ताख्यान' नामक कथा-ग्रन्थ की रचना की है । उसमें खंडपाणा को 'अर्थशास्त्र' की निर्मात्री बताई गई है, परन्तु उसका अर्थशास्त्र उपलब्ध नहीं हुआ है।
सम्भव है कि किसी जैनाचार्य ने 'अर्थशास्त्र' की प्राकृत में रचना की हो जो आज उपलब्ध नहीं है।
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