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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ग्रन्थकार सिंह रणथंभोर के शासक अलाउद्दीन खिलजी ( सन् १५३१ ) के मुख्य मंत्री पोरवाडज्ञातीय धनराज श्रेष्ठी का पुत्र था, यह इस ग्रंथ की प्रशस्ति (श्लो० ११२१) से तथा कृष्णर्षिगच्छीय आचार्य जयसिंहसूरि द्वारा धनराज मंत्री के लिये रचित 'प्रबोधमाला' नामक कृति की प्रशस्ति से ज्ञात होता है । धनराज का दूसरा पुत्र श्रीपति था। दोनों कुलदीपक, राजमान्य, दानी, गुणी और संघनायक थे, ऐसा भी प्रशस्ति से मालूम होता है।
1. खलचिकुलमहीपश्रीमदल्लावदीनप्रबलभुजरले श्रीरणस्तम्भदुर्गे।
सकलसचिवमुख्यश्रीधनेशस्य सूनुः समकुरुत निबन्धं सिंहनामा प्रभुः ।।११२॥ २. धरमिणि-वाडूनाम्ना स्त्रीयुगलं मन्त्रिधनराजस्य ।
प्रथमोदरजौ सीहा-श्रीपतिपुत्रौ च विख्यातौ ॥ १० ॥ ३. कुलदीपको द्वावपि राजमान्यौ सुदातृतालक्षणलक्षिताशयो।
गुणाकरौ द्वावपि संघनायको धनाङ्गजौ भूवलयेन नन्दताम् ॥
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