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आयुर्वेद
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की प्रतिलिपि की है । अन्त में 'नाडी निर्णय' ऐसा नाम दिया है । समग्र ग्रंथ पद्यात्मक है । ४१ पद्मों में ग्रंथ पूर्ण होता है। इसमें मूत्रपरीक्षा, तेलबिंदु की दोषपरीक्षा, नेत्रपरीक्षा, मुखपरीक्षा, जिह्वापरीक्षा, रोगों की संख्या, ज्वर के प्रकार आदि से सम्बन्धित विवेचन है
जगत् सुन्दरी प्रयोगमाला :
'योनिप्राभृत' और 'जगत् सुन्दरीप्रयोगमाला' – इन दोनों ग्रंथों की एक भाकर इन्स्टीट्यूट में है । दोनों ग्रंथ एक-दूसरे में मिश्रितं
ये हैं ।
'जगत्सुन्दरीप्रयोगमाला' ग्रन्थ पद्यात्मक प्राकृतभाषा में है । बीच में कहीं-कहीं गद्य में संस्कृत भाषा और कहीं पर तो तत्कालीन हिंदी भाषा का भी उपयोग हुआ दिखाई देता है । इसमें ४३ अधिकार हैं और करीब १५०० गाथाएँ हैं ।
इस ग्रंथ के कर्ता यशःकीर्ति मुनि हैं। वे कब हुए और उन्होंने अन्य कौन से ग्रन्थ रचे, इस विषय में जानकारी नहीं मिलती । पूना की हस्तलिखित प्रति के आधार पर कहा जा सकता है कि यशः कीर्ति वि० सं० १५८२ के पहले कभी हुए हैं।
प्रस्तुत ग्रंथ में परिभाषाप्रकरण, ज्वराधिकार, प्रमेह, मूत्रकृच्छ्र, अतिसार, ग्रहणी, पाण्डु, रक्तपित्त आदि विषयों पर विवेचन है । इसमें १५ यन्त्र भी हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं : १. विद्याधरवापीयंत्र, २. विद्याधरीयंत्र, ३. वायुयंत्र, ४. गंगायंत्र, ५. एरावणयंत्र, ६. भेरुंडयंत्र, ७. राजाभ्युदययंत्र, ८. गतप्रत्यागतयंत्र, ९. बाणगंगायंत्र, १०. जलदुर्गभयानकयंत्र, ११. उरयागासे पक्खि ० भ० महायंत्र, १२. हंसश्रवायंत्र, १३. विद्याधरीनृत्ययंत्र, १४. मेघनाद - भ्रमणवर्तयंत्र, १५. पाण्डवामलीयंत्र |
इसमें जो मन्त्र हैं उनका एक नमूना इस प्रकार है :
१. जसद्दत्तिणाममुणिणा भणियं णाऊण कलिसरूवं च । arities षि हु भव्वो जह मिच्छत्तेण संगिलह ॥ १३ ॥ २. यह ग्रन्थ एस० के० कोटेचा ने धूलिया से प्रकाशित किया है । इसमें अशुद्धियाँ अधिक रह गई हैं ।
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