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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
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उमादित्य ने प्रस्तुत कृति में मधु, मद्य और मांस के अनुपान को छोड़कर औषध विधि बतायी है । रोगक्रम या रोग चिकित्सा का वर्णन जैनेतर आयुर्वेद के ग्रंथों से भिन्न है । इसमें वात, पित्त और कफ की दृष्टि से रोगों का उल्लेख है । . वातरोगों में वातसंबंधी सब रोग लिखने का यत्न किया है । पित्तरोगों में ज्वर, अतिसार का उल्लेख किया है । इसी प्रकार कफरोगों में कफ से संबंधित रोग हैं । नेत्ररोग, शिरोरोग आदि का क्षुद्र- रोगाधिकार में उल्लेख किया है । इस प्रकार ग्रंथकार ने रोगवर्णन में एक नया क्रम अपनाया है ।
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यह ग्रंथ २५ अधिकारों में विभक्त है : १. स्वास्थ्यरक्षणाधिकार, २. गर्भोत्पत्तिलक्षण, ३. सूत्रव्यावर्णन ४. धान्यादिगुणागुणविचार, ५. अन्नपानविधि, ६. रसायनविधि, ७. चिकित्सासूत्राधिकार, ८. वातरोगाधिकार, ९. पित्तरोगाधिकार, १०. कफरोगाधिकार, ११. महामायाधिकार, १२. वातरोगाधिकार, १३ - १७. क्षुद्ररोगचिकित्सा, १८. बालग्रहभूत तंत्राधिकार, १९. विषरोगाधिकार, २०. शास्त्रसंग्रहतंत्रयुक्ति, २१. कर्मचिकित्साधिकार, २२. भेषजकर्मोपद्रवचिकित्साधिकार, २३. सर्वौषधकर्मव्यापच्चिकित्साधिकार २४. रसरसायनाधिकार, २५. कल्पाधिकार, परिशिष्ट - रिष्टाध्याय, हिताहिताध्याय । '
नाडीविचार :
अज्ञातकर्तृक 'नाडीविचार' नामक कृति ७८ पद्यों में है । पाटन के ज्ञानभंडार में इसकी प्रति विद्यमान है । इसका प्रारंभ 'नत्वा वीरं' से होता है अतः यह जैनाचार्य की कृति मालूम पड़ती है। संभवतः यह 'नाडीविज्ञान' से अभिन्न है । नाडीचक्र तथा नाडीसंचारज्ञान :
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'नाडीचक्र' और 'नाडीसंचारज्ञान' – इन दोनों ग्रंथों के कर्ताओं का कोई उल्लेख नहीं है। दूसरी कृति का उल्लेख 'बृहट्टिप्पणिका' में है, इसलिये वह ग्रंथ पांच सौ वर्ष पुराना अवश्य है ।
नाडी निर्णय :
अज्ञातकर्तृक 'नाडीनिर्णय' नामक ग्रंथ की ५ पत्रों की हस्तलिखित प्रति मिलती है | वि०सं० १८१२ में खरतरगच्छीय पं० मानशेखर मुनि ने इस ग्रंथ
१. यह ग्रन्थ हिंदी अनुवाद के साथ सेठ गोविंदजी रावजी दोशी, सखाराम नेमचंद ग्रन्थमाला, सोलापुर (अनु० वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री ) ने सन् १९४० में प्रकाशित किया है ।
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