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________________ २३० जैन साहित्य का बृहद् इतिहास वैद्यवल्लभ: मुनि हितरुचि के शिष्य मुनि हस्तिरुचि ने वैद्यवल्लभ नामक आयुर्वेदविषयक ग्रन्थ की रचना की है। यह ग्रन्थ पद्य में है तथा आठ अध्यायों में विभक्त है । इनमें निम्नलिखित विषय हैं : १. सर्वज्वरप्रतीकार (पद्य २८), २. सर्वस्त्रीरोगप्रतीकार (४१), ३. कासक्षय-शोफ-फिरङ्ग-वायु-पामा-दव-रक्त-पित्तप्रभृतिरोगप्रतीकार (३०), ४. धातुप्रमेह-मूत्रकृच्छ्र-लिङ्गवर्धन-वीर्यवृद्धि-बहुमूत्रप्रभृतिरोगप्रतीकार (२६), ५. गुदरोगप्रतीकार (२४), ६. कुष्टविष-बरहल्ले-मन्दाग्नि-कमलोदरप्रभृतिरोगप्रतीकार ( २६ ), ७. शिरकर्णाक्षिरोगप्रतीकार ( ४२ ), ८. पाक-गुटिकाद्यधिकार-शेषयोगनिरूपण । द्रव्यावली-निघण्टु : मुनि महेन्द्र ने 'द्रव्यावली-निघण्टु' नामक ग्रंथ की रचना की है। यह वनस्पतियों का कोशग्रन्थ मालूम पड़ता है। ग्रन्थ ९०० श्लोक-परिमाण है। सिद्धयोगमाला: सिद्धर्षि मुनि ने 'सिद्धयोगमाला' नामक वैद्यक-विषयक ग्रन्थ की रचना की है। यह कृति ५०० श्लोक-परिमाण है। 'उपमितिभवप्रपञ्चाकथा' के रचयिता सिद्धर्षि ही इस ग्रन्थ के कर्ता हो तो यह कृति १०वीं शताब्दी में रची गई, ऐसा कह सकते हैं। रसप्रयोग : ____सोमप्रभाचार्य ने 'रसप्रयोग' नामक ग्रन्थ की रचना की है। इसमें रसका निरूपण और प्रारे के १८ संस्कारों का वर्णन होगा, ऐसा मालूम होता है। ये सोमप्रभाचार्य कब हुए यह अज्ञात है। रसचिन्तामणि : अनन्तदेवसूरि ने 'रसचिन्तामणि' नामक ९०० श्लोक-परिमाण ग्रंथ रचा है । ग्रंथ देखने में नहीं आया है। 5. तपागच्छ के विजयसिंहसूरि के शिष्य उदयरुचि के शिष्य का नाम भी हितरुचि था। ये वही हों तो इन्होंने 'षडावश्यक' पर वि० सं० १६९७ में - व्याख्या लिखी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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