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मायुर्वेद योगचिन्तामणि :
नागपुरीय तपागच्छ के आचार्य चन्द्रकीर्तिसूरि के शिष्य आचार्य हर्षकीर्तिसूरि ने 'योगचिन्तामणि' नामक वैद्यक-ग्रन्थ की रचना करीब वि० सं० १६६० में की है । यह कृति 'वैद्यकसारसंग्रह' नाम से भी प्रसिद्ध है।
आत्रेय, चरक, वाग्भट, सुश्रुत, अश्वि, हारीतक,वृन्द, कलिक, भृगु, भेल आदि आयुर्वेद के ग्रंथों का रहस्य प्राप्त कर इस ग्रंथ का प्रणयन किया गया है, ऐसा ग्रन्थकार ने उल्लेख किया है।'
इस ग्रन्थ के संकलन में ग्रन्थकार की उपकेशगच्छीय विद्यातिलक वाचक ने सहायता की थी।
ग्रन्थ में २९ प्रकरण हैं, जिनमें निम्नलिखित विषय हैं :
१. पाकाधिकार, २. पुष्टिकारकयोग, ३. चूर्णाधिकार, ४. क्वाथाधिकार, ५. घृताधिकार, ६. तैलाधिकार, ७. मिश्रकाधिकार, ८. संखद्रावविधि, ९. गन्धकशोधन, १०. शिलाजित्सत्त्ववर्णादिधातु-मारणाधिकार, ११. मंडूरपाक, १२. अभ्रकमारण, १३. पारदमारणरादिको हिंगूलसे पारदसाधन, १४. हरतालमारण-नाग-तांबाकाढणविधि, १५. सोवनमाषीमणशिलादिशोधन-लोकनाथरस, १६. आसवाधिकार, १७. कल्याणगुल-जंबीरद्रवलेपाधिकार-केशकल्पलेप-रोमशातन, १८. मलम-रुधिरस्राव, १९. वमन-विरेचनविधि, २०. बफारौ अधूलौ नासिकायां मस्तकरोधबन्धन, २१. तक्रपानविधि, २२. ज्वरहरादिसाधारणयोग, २३. वर्धमान-हरीतकी-त्रिफलायोग-त्रिगडू-आसगन्ध, २४. कायचिकित्सा-एरण्डतैल-हरीतकी-त्रिफलादिसाधारणयोग, २५. डंभ-विषचिकित्सा-स्त्रीकुक्षिरोग-चिकित्सा, २६. गर्भनिवारण-कर्मविपाक, २७. ( वन्ध्या) स्त्री-रोगाधिकार-सर्वरोग-सर्वदोषशान्तिकरण, २८. नाडीपरीक्षा-मूत्रपरीक्षा, २९. नेत्रपरीक्षा-जिह्वापरीक्षादि ।
1. आत्रेयका चरक-वाग्भट-सुश्रुताश्वि-हारीत-वृन्द-कलिका-भृगु-भेड(ल)पूर्वाः।
येऽमी निदानयुतकर्मविपाकमुख्यास्तेषां मतं समनुसृत्य मया कृतोऽयम् ॥ २. श्रीमदुपकेशगच्छीयविद्यातिलकवाचकाः
किचित् संकलितो योगवार्ता किश्चित् कृतानि च ॥
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